June 26, 2018

स्वच्छता सर्वेक्षण में छत्तीसगढ़ तीसरा बेस्ट परफार्मिंग स्टेट, अंबिकापुर फर्स्ट

शहरी विकास मंत्रालय द्वारा जारी स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में छत्तीसगढ़ देश का तीसरा बेस्ट परफार्मिंग स्टेट बन गया है। अंबिकापुर को छोटे शहरों की सूची में सफाई में बेस्ट इनोवेशन एंड बेस्ट प्रैक्टिसेज में देश में पहला स्थान मिला है। झारखंड ने महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ को पछाड़ते हुए पहला स्थान प्राप्त किया है। स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर देश की अव्वल सिटी घोषित हुई है। इसके बाद भोपाल और चंडीगढ़।

सफाई के लिए नई तकनीक अपनाते अंबिकापुर के सफाई कर्मचारी स्वच्छता अभियान के तहत इनोवेशन के लिए अंबिकापुर को पूरे देश में पहला स्थान मिला है। यह प्रदेश का पहला ऐसा शहर है, जिसने डंपिंग ग्राउंड को खत्म कर उसे स्वच्छता पार्क में बदल दिया। 

शहरी विकास मंत्रालय द्वारा जारी स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में झारखंड को बेस्ट परफार्मिंग स्टेट का प्रथम पुरस्कार मिला है। झारखंड ने महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ को पछाड़ते हुए पहला स्थान प्राप्त किया है। सर्वेक्षण में रांची को बेस्ट स्टेट कैपिटल इन सिटीजन फीडबैक में प्रथम स्थान मिला है। गिरिडीह (1-3 लाख आबादी) को बेस्ट सिटी इन सिटीजन फीडबैक का पुरस्कार मिला है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ देश का तीसरा बेस्ट परफार्मिंग स्टेट बन गया है। प्रदेश ने यह उपलब्धि पहली बार हासिल की है। प्रदेश ही नहीं, यहां के छोटे शहरों ने भी सफाई में अपनी प्राथमिकता दर्ज कराई है। अंबिकापुर को छोटे शहरों की सूची में सफाई में बेस्ट इनोवेशन एंड बेस्ट प्रैक्टिसेज में देश में पहला स्थान मिला है। कांकेर जिले से छोटे से कस्बे नरहरपुर ने बेस्ट सिटीजन फीडबैक में देशभर के कस्बों में अपनी जगह बनाकर पड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है।

स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए देश के 4203 शहरों को शामिल किया गया था। इसमें आबादी के अनुसार शहरों की रैंकिंग की गई है। सर्वेक्षण के तहत जितनी तरह की चुनौतियां रखी गई थीं, उनके अनुसार भी शहरों की रैंकिंग की गई है। इसके मुताबिक देश के सबसे साफ-सुथरे तीन शहरों में क्रमश: इंदौर, भोपाल और चंडीगढ़ शामिल हैं। इन शहरों में स्वच्छता के सभी मापदंडों को बेहतर तरीके से अपनाते हुए इसका पालन किया गया। छत्तीसगढ़ ने देश के 29 राज्यों के मुकाबले काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। उसने पूरे देश में बेस्ट परफार्मिंग स्टेट की श्रेणी में तीसरा स्थान हासिल किया है। सबसे खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ ने मध्यप्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, केरल, पंजाब जैसे राज्यों को पछाड़कर तीसरा स्थान हासिल किया है।

इसमें झारखंड पहले नंबर पर और महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर रहा। स्वच्छता अभियान के तहत इनोवेशन के लिए अंबिकापुर को पूरे देश में पहला स्थान मिला है। यह प्रदेश का पहला ऐसा शहर है, जिसने डंपिंग ग्राउंड को खत्म कर उसे स्वच्छता पार्क में बदल दिया। डोर टू डोर कचरा कलेक्शन सभी वार्डों में चल रहा है और इस अभियान में लगभग 400 महिलाएं लगी हैं। हर चार वार्डों के बीच एक एसएलआरएम सेंटर बना है, जहां डोर टू डोर कलेक्शन के कचरे की छंटाई की जाती है। कचरे से खाद बनाने के अलावा अन्य उपयोगी कचरे की बिक्री भी की जा रही है।

सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर सबसे स्वच्छ शहर के रूप में सामने आया है। इसके बाद भोपाल और चंडीगढ़ का स्थान रहा। आवास राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आज स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 के नतीजे घोषित किए। इसका मकसद देश भर के शहरों में स्वच्छता स्तर का आकलन करना है। छत्तीसगढ़ में अभियान को जारी रखने और सफल बनाने के लिए प्रशासन और नगर निगम ने काफी कवायद की। सड़क पर कचरा आने से रोकने के लिए निगम ने सख्त कदम उठाए। हालांकि अभी भी कई वार्डों में लोग सड़कों पर कचरा फेंकते हैं, लेकिन जुर्माना और अन्य कार्रवाइयों से इस पर रोक लग रही है। जहां कचरा फेंका जाता था, उन जगहों पर रंगोली बनवाने जैसे कदम उठाए गए।

जनवरी में जब स्वच्छता सर्वे टीम आई तो उससे इन प्रयासों को सराहना मिली थी। स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में सफाई के मामले में राजधानी रायपुर की रैंकिंग जारी नहीं हुई है। दिल्ली से बुधवार को केवल तीन शहरों इंदौर, भोपाल और चंडीगढ़ के नाम घोषित किए गए, लेकिन ऐसे संकेत हैं कि 10 लाख से ऊपर आबादी वाले शहरों में रायपुर टॉप टेन में भी नहीं है। स्मार्ट सिटी घोषित होने के बावजूद सफाई के मामले में रायपुर की पोजीशन क्यों नहीं सुधरी, रैंकिंग जारी होने के तुरंत बाद इसकी मीडिया पड़ताल में पता चला है कि पिछले साल ओडीएफ और टॉयलेट के मामले में रायपुर पिछड़ा था और 129वीं पायदान पर था। इस बार 4203 शहरों के सर्वे में रायपुर की रैंकिंग का खुलासा नहीं हो सका है।

कौन सी कमजोरियां राजधानी को सफाई के मामले में पीछे कर रही हैं, इस बारे में शहर के बड़े वर्ग का अनुमान है कि कचरा उठाने से नष्ट करने में एजेंसियां नाकाम रही हैं, गलियों से नालियों तक गंदगी नजर आ रही है और यही कुप्रबंधन सबसे बड़ी वजह हो सकती है। स्वच्छता सर्वे की रैंकिंग में राजधानी को 18 बिंदुओं पर परखा गया। इनमें कॉलोनियों, बस्तियों, पुराना शहर, अव्यवस्थित और व्यवस्थित बसाहटों में सफाई की स्थिति, सार्वजनिक टॉयलेट्स के इंतजाम वगैरह शामिल हैं। क्या ये महिलाओं और बच्चों के लिए सुविधाजनक हैं, क्या टॉयलेट एरिया में ड्रेनेज सिस्टम काम कर रहा है, बाजारों से लेकर सार्वजनिक जगहों पर सफाई के क्या हालात हैं, सूखे और गीले कचरे का प्रबंधन हो रहा है या नहीं, मापदंडों में इन बिंदुओं के आधार पर भी राजधानी में जांच हुई।

दिल्ली से आई टीम ने इन बिंदुओं पर ही शहर का आंकलन किया था। इसके अलावा, लोगों से बात भी की थी कि शहर की सफाई में वे क्या सोचते हैं (सिटीजन फीडबैक), जैसा मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण माना गया था। सर्वे के लिए दिल्ली टीम के दौरे के समय सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट का काम शुरू नहीं हो सका था क्योंकि नई कंपनी ने तब तक काम नहीं संभाला था। कंपनी ने काम शुरू भी किया, तो प्रारंभिक तौर पर 70 की जगह 30 वार्डों में ही। इस वजह से राजधानी के सफाई इंतजाम अब तक धराशायी हैं। कूड़ा प्रबंधन के लिए बनाए गए सिटी वेस्ट मैनेजमेंट सेंटर में भी काम अच्छा नहीं चल रहा है। शहर में अब भी खुले में ही कचरा डंप हो रहा है। स्वच्छ सर्वेक्षण में यह महत्वपूर्ण बिंदु है। माना जा रहा है कि कचरा प्रबंधन में नाकामी बड़ी वजह हो सकती है।

सफाई सर्वेक्षण में रायपुर की स्थिति स्पष्ट न होना राज्य के लिए एक चिंताजनक स्थिति माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि घरों से सूखा और गीला कचरा अलग-अलग जमा करने के लिए 8 जोन, 70 वार्डों में डस्टबिन बांटी जानी थी लेकिन जिस वक्त सर्वे किया गया, पता चला कि डस्टबिन शहर में सिर्फ 60 फीसदी घरों तक ही पहुंच पाई है। राजधानी के हर जोन दफ्तर में हजारों की संख्या में डस्टबिन डंप पड़ी है। हरी और नीली डस्टबिन बांटी तो गई, लेकिन घरों में कचरा कलेक्ट करने के लिए जो लोग आ रहे हैं, वह सूखा और गीला कचरा अलग से नहीं मांग रहे हैं। यही नहीं, कलेक्शन सेंटर में कचरे का पहाड़ खड़ा किया जा रहा है। इसमें भी सूखा और गीला अलग नहीं है। दिल्ली की टीम ने यहां जिन बिंदुओं पर सर्वे किया था, उनमें सफाई के लिए मोबाइल एप का इस्तेमाल शामिल है।

यह जरूरी बिंदु है, क्योंकि सभी शहरों की तरह सफाई की शिकायतों के निराकरण के लिए स्वच्छता एप राजधानी में भी लोगों के मोबाइल पर डाउनलोड करवाया गया, लेकिन अभियान चलाने के बावजूद केवल चार हजार के आसपास। इस एप के रिस्पांस टाइम में भी बड़ा इश्यू माना जा रहा है। मापदंडों के अनुसार एप में जैसे ही शिकायत अपलोड की जाए, तुरंत निराकरण होना चाहिए लेकिन राजधानी में शिकायतों के निराकरण में ही एक से दो दिन तक लग रहे हैं। पिछले बार स्वच्छता सर्वेक्षण में रायपुर शहर के पिछडऩे की सबसे बड़ी वजह टॉयलेट ही थी।

सार्वजनिक स्थानों में टॉयलेट जैसी सुविधाओं के खस्ता हाल के कारण से रायपुर टॉप टेन में जगह नहीं बना पाया था। इस बार भी फरवरी के महीने में सफाई सर्वे करके गई दिल्ली की टीम ने रायपुर समेत राज्य के अन्य शहरों का कुछ बिंदुओं पर दोबारा सर्वे किया था। रायपुर में 9 बिंदुओं के लेकर ये कवायद हुई थी हालांकि प्रदेश के बाकी शहरों की तुलना में ये बेहद कम थी, क्योंकि कई जगह 25 से ज्यादा प्वॉइंट्स पर रिव्यू किए गए थे। सबसे ज्यादा पड़ताल टॉयलेट को लेकर की गई है। अब सवाल उठ रहे हैं कि सड़कों और गलियों में कचरा देखा जा सकता है, ऐसे में नंबर वन बनेंगे कैसे?

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