September 26, 2018

सरकारी स्कूल में मिल रही बेहतर शिक्षा के बाद कॅरियर के प्रति जागरूक हो रहे हैं गांव के बच्चे भी, पुलिस में जाना चाहता है दीपक और शिक्षक बनकर भविष्य संवारना चाह रही प्रीति

सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधरी है। वहां के शिक्षक भी पढ़ाई पर ध्यान दे रहे हैं। कॅरियर काउंसिलिंग की जा रही है। बच्चों के साथ उनके भविष्य को लेकर चर्चा होने लगी है। परिणाम देखना है तो रायगढ़ जिले के काेरिया दादर प्राइमरी स्कूल में चले जाइए। चौथी-पांचवीं के बच्चे लक्ष्य निर्धारित कर पढ़ाई कर रहे हैं। उनकी बातों से यही लगता है कि उनके दिमाग में भविष्य की प्लानिंग है और वे इसी पर आगे बढ़ना चाह रहे हैं।

पांचवीं में पढ़ने वाली प्रीति कहती है कि उसे टीचर बनना है। क्योंकि वह दूसरे बच्चों को सिखाना चाहती है। उन्हें डॉक्टर-इंजीनियर बनाना चाहती है। जब पूछा गया कि तुम्हें क्यों नहीं बनना, डॉक्टर या इंजीनियर। तो कहती है कि मैं अकेले क्यों बनूं जब मैं खुद बहुत सारे बना सकती हूं। उसी कक्षा में पढ़ने वाला दीपक पुलिस की नौकरी करना चाह रहा है। वह अपराध खत्म करना चाहता है। उसे चोरी, डकैती, लूट, झगड़ा, मारपीट से नफरत है। वह कहता है कि गुंडों को तो सीधे जेल में डाल देना चाहिए। मैं पुलिस बनकर यही करुंगा। ये बातें काल्पनिक नहीं हैं, बल्कि उस स्कूल में दी जा रही शिक्षा का नतीजा है। वहां शिक्षक केवल विषयों की पढ़ाई नहीं करा रहे, अच्छे नागरिक बनाने पर भी उनका जोर है।

प्रीति के पिता परमानंद यादव सीधे-सादे किसान हैं। सुबह खेत जाना और शाम को लौटकर बच्चों के साथ उनके स्कूल की बातें करना। बच्चों की जरूरत पूरी करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। मां चमेली घर का कामकाज देखती है। सेहतमंद खाना तैयार करना और बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना, उनकी ड्यूटी का हिस्सा है। एक बहन है प्रीतम। वह भी स्कूल जाने लगी है। प्रीति अपने घर की माली हालत से अच्छी तरह वाकिफ है। इसलिए उसे कोई महंगे खिलौने नहीं चाहिए। वह तो आसपास के संसाधन जुटाकर खुद के खिलौने बना लेती है। हां, इरादे बुलंद हैं।

ऐसे ही हालात दीपक के हैं। पिता गुरमीत चौहान लोहार हैं। दिनभर लोहा पीटते हैं। औचार बनाते हैं। हल सुधारते हैं। यानी मेहनत का काम है। पसीना बहाकर दो-चार पैसे कमाते हैं और उसी से गुजारा चलता है। मां टीना घर के कामकाज के अलावा वक्त निकालकर उनकी मदद कर देती है। दीपक के अलावा घर में उसकी एक बहन है और एक छोटा भाई। लेकिन परिवार की ये उलझने और आर्थिक निर्बलता उसे उद्देश्य के आड़े नहीं आ रही। छोटा सा बच्चा प्रश्न के सीधे जवाब देता है। कहता है खूब पढ़ूंगा और पुलिस बनूंगा।

छोटे-छोटे बच्चों की बड़ी-बड़ी बातें सुनकर उनके मां-बाप मुस्कुराते हैं, लेकिन उन्हें भी यकीन है कि उनकी संतानें एक दिन जरूर कुछ बनेंगी। प्रति के पिता परमानंद का कहना है कि हम तो पढ़ नहीं पाए, ये कुछ बनेगी तो नाम रोशन करेगी। वहीं दीपक के पिता गुरमीत भी अपने बेटे की पढ़ाई से संतुष्ट हैं। उनका कहना है कि स्कूल तो सरकारी है, लेकिन पढ़ाई अच्छी हो रही। इसीलिए उनका बेटा ऐसी बातें करता है। उसकी बातें सुनकर आत्मविश्वास बढ़ता है। उन्हें पूरा विश्वास है कि दीपक अपने जीवन में जरूर कुछ करेगा।

दरअसल शिक्षा के अधिकार कानून ने स्कूलों की परिस्थितियां बदल दी हैं। अब प्रदेश के सभी प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की पर्याप्त व्यवस्था है। शिक्षकों को प्रॉपर ट्रेनिंग दी जा रही है। स्कूलों का माहौल अच्छा होने से बच्चे आकर्षित हो रहे हैं और शाला त्यागियों की संख्या पूरी तरह खत्म हो चुकी है। इस तरह देखें तो शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेश ने खूब तरक्की की है। इसके चलते कई प्राइमरी स्कूलों का मिडिल में और मिडिल स्कूलों का हाईस्कूलों में उन्नयन हो चुका है।

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