October 29, 2018

मिथलेश साहू ने सरकारी योजनाओं का उठाया लाभ और संवारी अपनी जिंदगी

रायपुर जिले के अभनपुर विकासखण्ड के ग्राम सोनेसिल्ली निवासी मिथलेश साहू के मौजूदा परिस्थितियों को बदलने की इच्छाशक्ति और महात्मा गांधी नरेगा से बनी डबरी (फार्म पोण्ड) के साथ-साथ शासन की अन्य योजनाओं ने उन्हें आम किसान से एक खास और उन्नतशील किसान बना दिया है। मिथलेश पहले उन आम किसानों में से ही एक थे, जो अपने खेतों में सामान्य किसानों के तरह सिंचाई और दूसरी समस्याओं से जूझते रहते थे।

मनरेगा से उनके खेत में बनी डबरी की मेढ़ पर लगे पपीते और केले के पौधे, डबरी के पानी से हरी-भरी बाड़ी, जैविक खाद के लिए बना वर्मीकम्पोस्ट टैंक, सौर ऊर्जा से ऊर्जाकृत सिंचाई पम्प तथा स्प्रिंक्लर्स, उनके आम से खास बनने की कहानी खुद ही बयां कर रही हैं।सोनेसिल्ली के मिथलेश ने बताया कि उनके पास कुल आठ एकड़ कृषि भूमि है, जिसमें वे धान की फसल लेते रहे हैं। सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था के लिए उन्होंने खुद के पैसों से एक डबरी भी खुदवाई थी, लेकिन छोटी और कम गहराई होने के कारण कारगर साबित नहीं हुई। ऐसे में पानी के लिए वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता था। उन्होंने बताया कि एक दिन मुझे हमारे ग्राम पंचायत के सरपंच श्री किशन साहू से खुद के खेत में महात्मा गांधी नरेगा से डबरी खुदने की जानकारी प्राप्त हुई।

डबरी से एक किसान को क्या-क्या फायदा हो सकता है, इसकी पूरी जानकारी तो पहले से ही मुझे थी, सो मैंने एक पल की देरी किये बिना ग्राम पंचायत में डबरी के लिए आवेदन दे दिया। कुछ ही दिन के बाद मुझे सरपंच से 2.05 लाख रुपये की लागत से डबरी निर्माण की स्वीकृत होने की जानकारी मिली। 23 मई, 2016 को मेरे खेत में डबरी के लिए खुदाई प्रारंभ हो गई। इसमें मैंने भी काम किया और मुझे 15 दिन की मजदूरी मिली। गांव के ग्रामीणों की मदद से 12 जून, 2016 को डबरी का निर्माण पूरा हो गया। इस प्रकार मुझे साल 2016-17 में मेरे खेत में एक बड़ी और गहरी डबरी के रुप में उपयोगी परिसम्पत्ति मिल गई।

डबरी बनने के बाद, उसमें बारिश का पानी भरने पर आसपास की जमीन में नमी रहने लगी। इसे देखते हुये मैंने इसकी मेढ़ और आस-पास की जमीन में पपीते और केले के पौधों का रोपण कर दिया, जो आज इतने बड़े हो गये हैं। इसके बाद साथ की लगी जमीन में अरहर और चने के बीज भी रोप दिए थे। फिर बाड़ी में गोभी, प्याज, मिर्ची और धनिया भी उगाया। इन्हें बाजार में बेचने पर लगभग 50 हजार रुपयों की कमाई हुई। वहीं दूसरी ओर मैंने डबरी में 15 हजार रुपये के मछली के बीज डाल दिया। नियमित रुप से देखभाल के बाद मछलीपालन के माध्यम से मुझे लगभग एक लाख रुपए की आमदनी हुई।

श्री मिथलेश ने बतया कि रसायनिक खाद की खरीदी पर होने वाले खर्च से बचने और जैविक खाद के लिए मैने अपने खेत में वर्मी कम्पोस्ट टैंक बनवाया। खेती-बाड़ी में सिंचाई के लिए पम्प पर होने वाले बिजली बिल के खर्चे को कम करने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ सरकार की सौर सुजला योजना का लाभ भी लिया। इस योजना में मात्र 20 हजार रुपयों के अंशदान से पांच लाख रूपए का सौर ऊर्जा से ऊर्जाकृत पम्प की स्थापना खेत में हो गई। अब सिंचाई के साधन का एक और विकल्प भी उपलब्ध हो गया। इसके बाद मैंने कृषि विभाग की योजनाओं की जानकारी ली और सब्सिडी का लाभ लेते हुये खेत में स्प्रिंक्लर तथा पाइप भी लगवाया।यह जरुर बताना चाहूँगा कि राज्य सरकार की योजनाओं से मुझ जैसे किसानों को बहुत फायदा हो रहा है। इन योजनाओं से मैं आज उन्नतशील किसान के रूप मे ंकार्य कर रहा हूँ। अब मेरी इस डबरी और खेती-बाड़ी को देखने के लिए दूर-दराज से ग्रामीण किसान सीखने के लिए आते हैं।

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