September 19, 2018

विकास से जुड़ी बांस से सूफा और टोरी बनाने वाले पहाड़ी कोरवाओं की पहली पीढ़ी, रैनखाेल में प्राइमरी व मिडिल स्कूल खुलने के बाद मुख्यधारा से जुड़ा गांव

पहाड़ों के बीच बसा जांजगीर-चांपा जिले का गांव रैनखोल। जहां जाने के लिए पहले दस बार सोचना पड़ता था। आज वहां तक पहंुचना बेहद आसान हो गया है। वहां रहने वाले पहाड़ी कोरवाओं की पहली पीढ़ी स्कूल जाकर पढ़ाई कर रही है और बांस का सूपा और टोकरी बनाने वाले परिवार समाज की मुख्यधारा से जुड़े चुके हैं।

गांव में ही प्राइमरी व मिडिल स्कूल खुल चुके हैं और गांव के 90 परिवारों के बच्चे इन स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। चैतराम और उसकी पत्नी फूलमती अपने दो बच्चों के साथ गांव में गुजर बसर कर रहे हैं। बड़ा बेटा गणेश कक्षा 9वीं की पढ़ाई कर रहा है और छोटा रमेश प्राइमरी स्कूल का छात्र है। गणेश और रमेश की तरह गांव के दूसरे बच्चे भी स्कूल जाते हैं। चैतराम ने बताया कि यह उनकी पहली पीढ़ी है जो स्कूल जा रही। इससे पहले किसी ने स्कूल का मुंह नहीं देखा। शिक्षा की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया। पूर्वज जंगल में भटकते रहे और उनके बाद हम भी उनके ही बताए रास्ते पर चले। जंगल जाना। वहां से बांस लाना। बांस से सूपे और टोकरी बनाना। फिर बाजार जाकर उन्हें बेचना।

बस यही जिंदगी थी। थोड़ी कमाई खेती से हो जाती थी। घर की महिलाएं भी इसी में हाथ बंटाया करती थीं। जब गणेश को पहली बार स्कूल भेजा तो बहुत खुशी हुई। अब तो वह 9वीं की पढ़ाई कर रहा है और खूब पढ़ेगा। रमेश को भी पढ़ाएंगे। इस तरक्की से चैतराम और फूलमती बेहद खुश हैं। पहाड़ी कोरवाओं के बीच से शिक्षक बने राजकुमार सिंह पर पूरा गांव गर्व करता है। उनकी प्रेरणा से दूसरे बच्चों में भी शिक्षा के प्रति खासा उत्साह है। इधर रैनखोल के विकास को लेकर सरकार भी प्रतिबद्ध है। पूरा प्रशासनिक अमला प्लानिंग में लगा हुआ है। इसके लिए सबसे पहले 2005-06 में सोलर लाइट से गांव को रोशन किया गया। फिर 2014-15 में पहाड़ाें के बीच बसे इस गांव को सड़क मार्ग से जोड़ा गया। इसके बाद 2016-17 में सरकार ने सौर ऊर्जा पर निर्भरता भी खत्म कर दी। खंभे और ट्रांसफार्मर लगाकर गांव तक बिजली पहुंचा दी गई। अब गांव तक आवाजाही सुगम है और पूरा गांव रोशन है।

केवल यही नहीं गांव के सर्वागीण विकास के लिए प्राइमरी-मिडिल स्कूल खोले गए। इसके अलावा पीने के लिए शुद्ध पानी भी मुहैया कराया गया। गांव में कोरवा जनजाति के अलावा धनवार, गोंड, यादव और चौहान भी हैं। उन्हें लेकर भी सरकार सजग है। कुल मिलाकर रैनखोल के हर परिवार को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। चैतराम कहते हैं कि सड़क और बिजली बनने के बाद लोगों को राहत मिली थी, लेकिन सरकार ने स्कूल खोलकर आने वाली पीढ़ियों को दिशा दे दी। हमें भी पढ़ाई के फायदे समझ आ रहे हैं। यह बहुत जरूरी है।


और स्टोरीज़ पढ़ें
से...

इससे जुड़ी स्टोरीज़

No items found.
© 2021 YourStory Media Pvt. Ltd. - All Rights Reserved
In partnership with Dept. of Public Relations, Govt. of Chhattisgarh