October 29, 2018

सुंदर स्कूल देख हुई पढ़ने की इच्छा, अब टीचर बनकर पढ़ाना चाहती है राजेश्वरी, धमतरी के चर्रा गांव के प्राइमरी स्कूल में शिक्षित हो रहा पारधी समुदाय

एक स्कूल ऐसा भी है जिसकी सुंदरता और व्यवस्था ने घुमंतू पारधियों को इतना आकर्षित किया कि उनके बच्चे न केवल शिक्षा से जुड़े बल्कि छोटी उम्र में लक्ष्य भी निर्धारित कर लिया। अब उन्हें उनका स्कूल घर से ज्यादा अच्छा लगता है। तभी तो वहां की छात्रा राजेश्वरी पारधी छुट्‌टी के दिन भी स्कूल पहुंच जाती हैं। राजेश्वरी बड़ी होकर टीचर बनना चाहती है, क्योंकि उसे पढ़ना और पढ़ाना बेहद पसंद है। हम जिस स्कूल की बात कर रहे हैं वह धमतरी के चर्रा गांव में है। परिसर में बना गार्डन। गार्डन की क्यारी में छोटे-छोटे प्लांट्स के जरिए लिखे गए अल्फाबेट। सुंदर रंगों से सजी दीवारें। यहां की साफ-सफाई।

देखते ही मुंह से वाह निकल जाता है। हर कक्षा में महापुरुषों के चित्र हैं और उनसे संबंधित जानकारियां लिखी गईं हैं ताकि बच्चों का सामान्य ज्ञान बढ़े। इसके अलावा शरीर के अंग, गिनती, पहाड़ा, गणितीय सूत्र, विज्ञान से संबंधित चीजें भी दीवारों पर उल्लेखित है। स्कूल की व्यवस्था देखने के बाद वहां से आने का मन ही नहीं करता। राजेश्वरी बताती है कि सुबह पहुंचते ही प्रार्थना के बाद क्लास रूम में जाते ही पढ़ाई का मूड बन जाता है। टीचर जो भी पढ़ाते हैं, वह दीवारों पर अंकित होता है। कक्षाओं में ग्रीन बोर्ड लगे हैं, जिससे अक्षरों को समझने में परेशानी नहीं होती। स्कूल से यूनिफार्म मिला है। मध्याह्न भोजन के समय स्वादिष्ट खाना मिलता है।

ग्रामीणों ने बताया कि बच्चों के साथ शिक्षकों का व्यवहार कुछ अलग ही है। वे उन्हें बड़े प्यार से समझाते हैं। बच्चों के सवालों का सही तरीके से जवाब देते हैं। आपको बता दें कि राजेश्वरी के पिता राजकुमार पारधी और मां बैशाखिन बाई पहले जंगल की खाक छाना करते थे,जैसा की पारधी समुदायों में होता है। पारधी समुदाय एक जगह ठहरते ही नहीं। वे घुमंतू प्रवृत्ति के होते हैं। राजकुमार के साथ भी ऐसा ही था। जंगल जाना। वहां पक्षियों और जानवरों का शिकार करना। उनका मांस खाना और शहर लाकर बेचना। इनका कोई ठिकाना नहीं होता। ये जगह बदलते रहते हैं। लेकिन राजकुमार और उसका परिवार अब चर्रा में स्थाई आवास बना चुका है। इसका सबसे बड़ा कारण है नवीन प्राथमिक शाला चर्रा की व्यवस्था। स्कूल में एडमिशन के बाद इस समुदाय के बच्चों को स्वादिष्ट खाना मिला और अच्छी पढ़ाई भी। इसे छोड़कर वे कहीं नहीं जाना चाहते थे। हर साल दिसंबर में अक्सर जंगल का रुख करने वाला राजकुमार का परिवार अब गांव में ही खेती-बाड़ी कर रहा है। वे झाड़ू, टोकरी, चटाई जैसी चीजें बनाकर अपना रोजगार चला रहे हैं। अब उनका मुख्य उद्देश्य है बच्चों की पढ़ाई। वे बच्चों का भविष्य बनाने के लिए खानाबदोश जीवन त्याग चुके हैं।

राजेश्वरी पारधी मां बैशाखिन बाई पिता राजकुमार पारधी। पारधी समुदाय घुमंतु प्रवृति के होते हें। जंगलों में काफी समय बिताते हैं। जानवरों का शिकार करना। चिड़ीमार। जंगलों में चिड़िया पकड़ना। मांस खाना। जंगली जानवरों का मांस बनाे। पिछड़ी जाति। स्थिर ठिकाना नहीं होता। स्थाई आवास नहीं होता। इनके माता-पिता भी ऐसा ही काम करते थे। कुछ समय से खेती किसानी कर रहे हैं। अभ्ी इन्होंनेया भी एक ठिकाना बन लिया  है। इसका बड़ा कारण है यहां का स्कूल। गांव में स्कूल बना है वह बहुत सुंदर है। बच्चा एक बार स्कूल जाता है तो हर दिन जाता है। राजेश्वरी का स्कूल इतना सुंदर है कि वहां का वातावरण देखकर पता चलता है। क्लासरूम को सुंदर तरीके से रंगा गया है। पेड़ पौधों, पाठय पुस्तकों के बारे में जानकारी। महापुरुषों की पेंटिंग। जानवरों के बारे में। अक्षर मालाएं बनाई गईं है। गार्डन। मध्याहन भोजन स्वादिष्ट। स्कूल ड्रेस। टीचर दिलचस्पी लेकर पढ़ा रहे। राजेश्वरी तो छुट्‌टी के दिन भी जाना चाहती है। इस लगाव को देख माता-पिता ने वहीं बसेरा बना दिया। अपने सारे काम छोड़ दिए। दिसंबर में वे अक्सर जंगल में चले जाते थे। अब नहीं। झाड़ू और दूसरी चीजें बनाकर रोजगार चला रहे हैं। राजकुमार का कहना है कि इस पीढ़ी से पहले उनके घर में किसी ने पढ़ाई नहीं की। सभी खानाबदोश जीवन जिए और हम भी वैसा ही कर रहे थे, लेकिन सरकारी स्कूल की व्यवस्था देखी तो मन बदल गया। अब स्थाई तौर पर गांव में रहकर रोजी-रोटी चला रहे हैं। समुदाय के बाकि लोग भी अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए सबकुछ छोड़ चुके हैं।


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