नवाचार करने वाले कोहकाबोड़ के शिक्षकों ने पुरस्कार की राशि स्कूल को दान कर फिर मिसाल कायम की। शिक्षक शैलेष सोनी ने पुरस्कार मिलते ही बच्चों के लिए डेस्क बनवाने की मंशा जाहिर की थी और एक माह बाद उसे पूरा भी कर दिया। वहीं अनुराधा सिंह बोलीं- छात्राओं के टायलेट में टाइल्स नहीं है। पुरस्कार की राशि से यही काम कराएंगे। सरकारी स्कूल के शिक्षकों के इस समर्पण की वजह से ही खैरागढ़ ब्लॉक के बाकि शिक्षकों को भी प्रेरणा मिल रही है। कोहकाबोड़ के प्राइमरी व मिडिल स्कूल में नवाचार को देखते हुए वहां के शिक्षकों का सम्मान किया गया।
शिक्षक दिवस पर राजनांदगांव बसंतपुर के बल्देव प्रसाद मिश्र स्कूल में हुए कार्यक्रम में महापौर मधुसूदन यादव ने दोनों शिक्षकों को पुरस्कृत किया। महापौर ने भी दोनों शिक्षकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। शिक्षादूत पुरस्कार के तहत पांच हजार रुपए राशि मिलते ही शैलेष ने इसे अपनी मां स्व. इंद्राणी देवी के नाम स्कूल को दान करने की घोषणा कर दी। इसी तरह ज्ञानदीप पुरस्कार में अनुराधा को सात हजार रुपए मिले और इसे उन्होंने अपने पिता स्व. श्याम नारायण सिंह के नाम से स्कूल विकास में खर्च करने का ऐलान किया। शिक्षक शैलेष सोनी का कहना है कि मैंने भी जमीन पर बैठकर पढ़ाई की है। तब झुककर लिखने से पीठ में दर्द होता था। प्राइमरी के बच्चों की तकलीफ मैंने महसूस की है। पुरस्कार की राशि से उनके लिए छोटे-छोटे डेस्क बनवाऊंगा।
जरूरत पड़ी तो वेतन की राशि भी लगाऊंगा। अनुराधा सिंह ने बताया कि स्कूल का टॉयलेट साफ-सुथरा होना जरूरी है। खासतौर पर छात्राएं इसे लेकर काफी संवेदनशील रहती हैं। मैंने और स्टाफ ने महसूस किया कि स्कूल के टॉयलेट में टाइल्स लगाने से इसकी प्रॉपर सफाई हो सकेगी। इसी तरह शिक्षक दिवस के ही दिन राजभवन में राज्य शिक्षक सम्मान समारोह में कन्या शाला खैरागढ़ के शिक्षक कमलेश्वर सिंह और गाड़ाघाट के रविंद्रनाथ कर्महे को सम्मानित किया गया। कमलेश्वर को शिक्षा के विकास के लिए जागरूकता फैलाने,लोकव्यापीकरण में महिला स्वयं सहायता समूह की भूमिका, सामुदायिक सहभागिता से शाला विकास, ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में अध्ययनरत बालिकाओं को शत प्रतिशत उच्च कक्षाओं में प्रवेश दिलाने आदि विभिन्न कार्यों के लिए दिया गया। उन्होंने भी पुरस्कार की राशि बच्चों पर खर्च करने की बात कही।
गाड़ाघाट के शिक्षक कर्महे पालकों से सतत संपर्क में रहते हैं ताकि छात्रों की उपस्थिति बनी रहे। वे दिव्यांगों की खास मदद करते हैं। बच्चों को शिक्षा के साथ उनके स्वास्थ्य के लिए भी जागरूक करते हैं। स्वरचित कहानी, कविता के जरिए अध्यापन कार्य कराने की वजह से उनका चयन किया गया था। इस तरह सरकारी स्कूल में काम करने वाले शिक्षकों की ये कहानी बाकि शिक्षकों के लिए प्रेरणादायक है। वे शिक्षा को लेकर नित नए प्रयोग कर रहे हैं। बीआरसी भगत सिंह का कहना है कि कोहकाबोड़, मुंहडबरी जैसे ब्लॉक में कई स्कूल हैं,जहां नवाचार को लेकर शिक्षकों ने पूरी मेहनत की है।