September 13, 2018

पहले खेतों में जाकर करती थीं मजदूरी, वन और उद्यानिकी उत्पाद से आइसक्रीम और जूस बनाकर बेचने लगीं, अब हुईं आत्मनिर्भर

कवर्धा शहर से लगा हुआ है जोराताल गांव। गांव की महिलाएं पहले मजदूरी करतीं, खेत में जाकर किसानी का काम करतीं। कभी मजदूरी मिल जाती, तो कभी खाली हाथ घर लौटना पड़ता। घर-परिवार चलाने के लिए आर्थिक उन्नति के लिए पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना तो चाहती थीं, लेकिन यह हो न पा रहा था।

तब इन महिलाओं को कृषि विभाग के ‘आत्मा’ योजना की जानकारी मिली। इस योजना की जानकारी लेकर उन्होंने गांव की महिलाओं का अपना एक समूह बनाया। इस समूह ने तय किया कि ये जैविक खेती करेंगी। उद्यानिकी व वन उत्पाद से जुड़े फसल लेंगी। इस उत्पाद को उन्होंने नए तरीके से लोगों तक पहुंचाने की ठानी। इसकी प्रोसेसिंग की और आइसक्रीम से लेकर जूस तक तैयार किए। इनकी पैकेजिंग की और लोगों को कम कीमत पर उपलब्ध कराए। इनके लिए स्थानीय प्रशासन ने जिला पंचायत के पास ही एक आउटलेट भी खोल दिया, ताकि लोगों की पहुंच इनके उत्पादों तक हो सके। अब इनके प्राकृतिक व जैविक उत्पादों की सराहना चहुंओर होने लगी है। अब ये महिलाएं न सिर्फ खुद आर्थिक रूप से मजबूत बन चुकी हैं, बल्कि इनका नाम भी है।

जोराताल की महिलाएं ही जिला पंचायत के पास खुला अपना आउटलेट संभालती हैं। जिले की स्थानीय जैवविविधता, कृषि, उद्यानिकी, लघु वनोपज से संबंधित उत्पाद यहां मिलते हैं। इसकी पूरी शृंखला विकसित की गई है। यहां सीताफल का आइसक्रीम सबसे प्रसिद्ध उत्पाद है। बेल के जूस भी यहां मिलते हैं। कृषि अधिकारी एनएल पांडेय बताते हैं कि बेल का आयुर्वेद में वर्णन मिलता है। बेल व जामुन जैसे इनके जूस उत्पाद अब दीगर जगहों में मिलने वाले कार्बोनेटेड पेय को टक्कर देने की दिशा में नजर आते हैं। ये महिलाएं अमृत तुल्य पेय का उत्पाद बनाती हैं, जिसमें पोषकतत्व भरे होते हैं। यहां लोगों को शुद्ध शहद भी आसानी से मिलता है। बताते हैं कि वन से शुद्ध शहद निकालने के लिए बाकायदा किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। वर्धा से एक्सपर्ट बुलाए गए और बताया गया कि शहद कैसे निकाला जाता है। वन के वृक्षों से उतारे गए शहद को यहां रिफाइन करके इसे बेचा जाता है।

आत्मा योजना के अंतर्गत महिलाएं आगे बढ़ी हैं। कृषि व उद्यानिकी उत्पाद के साथ, प्रोसेसिंग, विपणन व मूल्य प्रवर्धन स्कीम तैयार किया गया,जिसका इन्हें फायदा मिल रहा है। इनकी आजीविका पहले घर तक सीमित थी। घर की बाड़ी में भी मजदूरी करती रहती थीं। इससे हटकर इन्होंने उद्यम किया। अब तक ये महिलाएं रायपुर, मंडला, नागपुर से लेकर गोवा तक नेशनल फूड प्रोसेसिंग मेले में जा चुकी हैं। वहां जाकर इन्होंने समझा है कि देश में फूड प्रोसेसिंग की स्थिति कितनी बेहतर है। यह सब देखने के बाद इन्हें भी अपना उज्जवल भविष्य नजर आने लगा है। इन्होंने कोदो-कुटकी का प्रसंस्करण भी चालू किया है और अब कोदो से इडली भी तैयार कर रही हैं।

यह एक महिला समूह ही नहीं, कबीरधाम जिले में ऐसी 2084 से भी ज्यादा महिला स्व सहायता समूह हैं, जिन्होंने अपने दम पर यह मजबूती हासिल की। छत्तीसगढ़ सरकार की योजनाओं ने इन्हें आगे बढ़ने मदद की। अब तक सफल इन महिला समूहों को देखकर दूसरी समूह भी आगे बढ़ रही हैं।  

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