चर्रा ब्लॉक के नवीन प्राथमिक शाला में पढ़ने वाले पारधी समुदाय के ये तीन बच्चे: अंजली, संतोषी और राजू। इनके परिवार में इससे पहले किसी ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था। जागरूक ग्रामीणों ने समझाया तो परिवार ने उन्हें स्कूल में दाखिला दिलाया। आज बच्चे बेहतर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। अंजली बड़ी होकर टीचर बनना चाहती है। वह कहती है कि समाज में शिक्षक होना जरूरी है ताकि बच्चे पढ़ाई कर सकें।
समुदाय के लोग कहते हैं कि अंजली टीचर बनी तो वह परिवार की पहली शिक्षित महिला होगी। वह जब पहली बार स्कूल आई तो परिसर में बने गार्डन को देख बेहद खुश हुई। तकरीबन आधे घंटे तक पेड़-पौधों को निहारती रही। गार्डन की क्यारी में छोटे-छोटे प्लांट्स से लिखे अल्फाबेट उसे भाए। सुंदर रंगों से सजी दीवारों ने आकर्षित किया। दीवारों पर बनी महापुरुषों की पेंटिंग को देखकर उसने जानकारी ली। वहां के शिक्षकों ने उनकी जिज्ञासा शांत की। पाठ्य सामग्रियों को देखा तो पढ़ने का मन किया। शरीर के अंगों के अंग्रेजी नाम। विज्ञान से संबंधित बातों ने उसका उत्साह बढ़ाया।
राजू और संतोषी को जब पता चला कि स्कूल में दोपहर का खाना भी मिलता है तो वे खुशी से उछल पड़े। बस फिर क्या था सभी का मन रम गया। दोनों बताते हैं कि सुबह पहुंचते ही प्रार्थना के बाद क्लास रूम में जाते ही पढ़ाई का मूड बन जाता है। टीचर जो भी पढ़ाते हैं, वह दीवारों पर अंकित होता है। कक्षाओं में ग्रीन बोर्ड लगे हैं, जिससे अक्षरों को समझने में परेशानी नहीं होती। स्कूल से यूनिफार्म मिला है। मध्याह्न भोजन के समय स्वादिष्ट खाना मिलता है। ग्रामीणों ने बताया कि बच्चों के साथ शिक्षकों का व्यवहार कुछ अलग ही है। वे उन्हें बड़े प्यार से समझाते हैं। बच्चों के सवालों का सही तरीके से जवाब देते हैं।
अंजली, संतोषी और राजू के माता-पिता पहले रोजगार के लिए जंगल पर निर्भर थे, जैसा की पारधी समुदायों में होता है। पारधी समुदाय एक जगह ठहरते ही नहीं। वे घुमंतू प्रवृत्ति के होते हैं। राजकुमार के साथ भी ऐसा ही था। जंगल जाना। वहां पक्षियों और जानवरों का शिकार करना। उनका मांस खाना और शहर लाकर बेचना। इनका कोई ठिकाना नहीं होता। ये जगह बदलते रहते हैं। लेकिन राजकुमार और उसका परिवार अब चर्रा में स्थाई आवास बना चुका है। वे घर पर ही काम कर दो पैसा कमाने लगे हैं।
इसका सबसे बड़ा कारण है नवीन प्राथमिक शाला चर्रा की व्यवस्था। स्कूल में एडमिशन के बाद इस समुदाय के बच्चों को स्वादिष्ट खाना मिला और अच्छी पढ़ाई भी। इसे छोड़कर वे कहीं नहीं जाना चाहते थे। हर साल दिसंबर में अक्सर जंगल का रुख करने वाला राजकुमार का परिवार अब गांव में ही खेती-बाड़ी कर रहा है। वे झाड़ू, टोकरी, चटाई जैसी चीजें बनाकर अपना रोजगार चला रहे हैं। अब उनका मुख्य उद्देश्य है बच्चों की पढ़ाई। वे बच्चों का भविष्य बनाने के लिए खानाबदोश जीवन त्याग चुके हैं।