कवर्धा की ही रहने वाली है आयशा परवीन। पिता ड्राइवर हैं। जीप चलाते हैं। मां हाउस वाइफ है। घर में एक छोटी बहन है और दो भाई। परिवार चल रहा है,लेकिन माली हालत इतनी अच्छी नहीं कि मेडिकल या इंजीनियरिंग जैसी पढ़ाई का खर्च उठा सकें। आयशा कहती है कि सरकार ने यहां आवासीय कोचिंग नहीं खोली होती तो परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए 12वीं के बाद उसे कहीं नौकरी करनी पड़ती और डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह जाता।
आखिर डॉक्टर ही क्यों? इस सवाल के जवाब में आयशा कहती है कि बचपन में अम्मी की तबियत बिगड़ी तो पारिवारिक स्थिति डांवाडोल हो गई। इलाज का अतिरिक्त बोझ किचन के बजट पर भारी पड़ा। बस तभी सोच लिया था बड़ी होकर कुछ और नहीं, डॉक्टर बनूंगी। स्कूल की पढ़ाई मन लगाकर कर रही थी। एक दिन पता चला कि छत्तीसगढ़ सरकार ने कवर्धा में आवासीय कोचिंग खोला है, जिसमें दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा होने वाली है। शिक्षकों की मदद से मैंने भी फार्म भरा और एग्जाम दिया। मेहनत की थी तो रिजल्ट भी आया। मैं सफल हुई। अब यहां रहकर पढ़ाई कर रही हूं। कोई सवाल समझ में नहीं आता तो शिक्षकों और साथियों की मदद लेती हूं।
सामर्थ्य कोचिंग के शिक्षकों की मदद से मैं और बेहतर करने का प्रयास कर रही हूं और पूरा विश्वास है कि अच्छे से पढ़ाई करुंगी तो नीट का एग्जाम अच्छे रैंक से पास कर पाऊंगी। इससे अच्छे कॉलेज में दाखिला मिलेगा और मैं डॉक्टर बन सकूंगी। वार्डन लखनलाल वारते का कहना है कि आवासी छात्रावास में बच्चों के रहने-खाने के बेहतर प्रबंध किए गए हैं। वे स्वयं इसका ख्याल रखते हैं कि बच्चों को पौष्टिक आहार दिए जाएं। टाइमिंग का विशेष ध्यान रखा जाए ताकि जेईई व नीट के एग्जाम में यहां के छात्र बेहर रैंक ला सकें। कचहरी पारा के शासकी हाईस्कूल में संचालित इस आवासीय कोचिंग के व्याख्याता और सामर्थ्य क्लासेस के डॉयरेक्टर हिमांशु का कहना है कि सरकार ने प्लान किया कि कैसे यहां के बच्चों को नीट और जईई के लिए तैयार किया जाए। इसके लिए यहां डेमो क्लासेस रखी गई। सामर्थ्य क्लासेस से हम भी आए।
मैं खुद कैमिस्ट्री की कक्षाएं लेता हूं। हम लोगों ने डेमो दिया और बच्चों ने पसंद किया। बच्चों के फीड बैक से ही हम यहां पहुंचे हैं। यहां अभी बच्चों के बेस पर काम कर रहे हैं। इसके साथ ही इनकी अंग्रेजी भाषा पर भी काम कर रहे हैं ताकि आगे जाने के बाद उन्हें कोई परेशानी न हो। बताया गया कि सुबह का सेशन दोपहर 12 बजे तक चलता है। फिर शाम को पढ़ाई होती है। एक से डेढ़ महीने बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करने में दिया गया। उन्हें बताया गया कि जेईई और नीट के फायदे क्या हैं।
अब उनकी प्रॉपर पढ़ाई शुरू हो चुकी है। हिमांशु का कहना है कि वे लोग अलग-अलग शहरों से आए हैं। मैट्रो सिटी से आए हैं तो शुरुआत में यहां रहने में तकलीफ हुई, लेकिन बच्चों का उत्साह देखकर अब काफी अच्छा लग रहा है। काेशिश करेंगे कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों का नीट और जेईई में सिलेक्शन हो।