May 13, 2018

किसी फायदे के लिए नहीं बल्कि महिलाओं को बीमारी से बचाने के लिए सैनिटरी पैड्स बेच रहीं गांव की ये महिलाएं

छत्तीसगढ़केकांकेरजिलेकीकुछमहिलाओंनेसैनिटरीपैडकीज़रूरतकोध्यानमेंरखतेहुएऔरसमाजमेंस्वच्छताकेप्रतिजागरूकतालानेकेलिएबेहतरीनप्रयासशुरूकियाहै।

 

भारत में खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं और किशोर बालिकाओं के बीच मासिक धर्म को लेकर कई सारी भ्रांतियां और समस्याएं हैं। वॉटर सप्लाई ऐंड सैनिटेशन कॉलेबॉरेटिव काउंसिल (WSSCC) की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के दूसरे सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत में मासिक धर्म से प्रभावित लगभग 35 करोड़ महिलाएं हैं। इनमें से 23 प्रतिशत किशोर बालिकाएं इस वजह से स्कूल छोड़ देती हैं। हैरानी की बात ये है कि सिर्फ 12 प्रतिशत महिलाएं ही सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। वहीं 10 फीसदी लड़कियों का मानना है कि मासिक धर्म कोई बीमारी है।

ये प्राकृतिक प्रक्रिया अपने साथ कई सारी समस्याएं भी लेकर आती है। मासिक धर्म के दौरान अगर सही से रखरखाव और साफ-सफाई का ध्यान न रखा जाए तो कई तरह की गंभीर समस्याएं जन्म ले सकती हैं। ग्रामीण इलाकों में पानी, साफ सफाई, शौचालय और सही जानकारी न होने की वजह से महिलाओं में कई गंभीर बीमारियां भी हो जाती हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सबसे सही उपाय यह होता है कि जागरूकता बढ़ाई जाए और सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल किया जाए। लेकिन हमारे समाज में इसके बारे में बात ही नहीं की जाती। जिससे यह एक प्रकार की भ्रांति बनकर रह जाती है।

 

छत्तीसगढ़ में कुछ महिलाओं ने इस दिशा में एक अनोखा प्रयास शुरू किया है। कांकेर जिले के नारायणपुर ब्लॉक के अंतर्गत राजपुर गांव की महिलाएं स्वयं सहायता समूह के जरिए सैनिटरी पैड्स को सस्ते दरों में उपलब्ध करा रही हैं और गांव में महिलाओं और पुरुषों के बीच जागरूकता भी ला रही हैं। इस कार्यक्रम को 'प्रदान' एनजीओ का सहयोग भी मिल रहा है। इस इलाके में यह एनजीओ 2008 से काम कर रहा है। राजपुर गांव के स्वयं सहायता समूह से जुड़ी एक महिला ने बताया, 'पहले गांव में कई सारी महिलाओं को मासिक धर्म की वजह से गंभीर बीमारियां हुईं। कुछ तो इतनी गंभीर थीं कि ऑपरेशन के जरिए बच्चेदानी तक निकालनी पड़ी। तो हमने सोचा कि महिलाओं की तकलीफ के बारे में कुछ किया जाए।'

 

यह अभियान पिछले साल शुरू हुआ। राजपुर में कुल 7 समूह हैं- महिला बचत, महिला शक्ति, लक्ष्मी समूह, शंकर समूह, उजाला समूह, इंदिरा समूह, जागृति महिला। समूह के बाद ग्राम संगठन बना। फिर पैड की जानकारी मिली। एक महिला ने बताया कि पहले बात करने में इतना संकोच होता था कि महिला आपस में इसके बारे में भी बात नहीं कर पाती थीं।

 

समूह की एक महिला ने बताया, 'हम राजनांदगांव गए तो वहां सैनिटरी पैड की मशीन देखने को मिली। वहां भी ऐसे ही एक ग्राम संगठन द्वारा इसे संचालित किया जा रहा था। लेकिन उस मशीन का खर्च लगभग 3 लाख रुपये था इसलिए हमने उसे लगाने में असमर्थता जाहिर कर दी। हमने सोचा कि 3,000 सैनिटरी पैड लेकर चलते हैं और गांव में महिलाओं के बीच पहले इसे प्रयोग कर के देखते हैं।' उन्होंने कहा, 'हम सभी समूह और ग्राम संगठन के बीच जाकर महिलाओं को जागरूक कर रहे हैं। हमारे गांव में महिलाएं मासिक धर्म को पाप समझती थीं। लेकिन अब कई सारी महिलाओं ने सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।'

 

राजपुर गांव के इस समूह को जिला प्रशासन की ओर से 51 हजार रुपये की अनुदान राशि भी मिली। अभी महिलाएं इन पैड्स को जिस दाम पर खरीद कर लाई हैं उसी दाम पर गांव में बेच रही हैं। इनका कहना है कि ये फायदा कमाने के उद्देश्य के लिए नहीं बल्कि लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए ऐसा कर रही हैं। इस कार्यक्रम पर नजर रखने वाले प्रदान के टीम कोऑर्डिनेटर कुंतल मुखर्जी बताते हैं, 'हम एक साथ तीन चीजों पर काम कर रहे हैं। पहला तो हेल्थ से जुड़ा मुद्दा है, दूसरा अप्रोच और तीसरा अवेयरनेस। इन तीनों मुद्दों को ये महिलाएं सामने ला रही हैं।'

 

पहले महिलाएं जहां कपड़े का इस्तेमाल कर रही थीं अब पैड्स का इस्तेमाल कर रही हैं। महिलाओं का कहना है कि पैड का इस्तेमाल करने से कई तरह की सहूलियतें हो जाती हैं। हालांकि पहले गांव में पैड्स की उपलब्धतता नहीं थी, महिलाओं को आदत नहीं थी, लेकिन जब उन्हें पता चला कि गंदा कपड़ा इस्तेमाल करने से बीमारियां हो सकती हैं तो उन्होंने पैड का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। गांव की महिलाएं मासिक धर्म में इस्तेमाल करने वाले कपड़े को सही से न धुला जाता है और उसे छुपाकर सुखाया जाता है इस वजह से उसमें कीटाणु आ जाते हैं जो रोग का कारण बनता है।

 

योरस्टोरी की टीम जब गांव की महिलाओं से बात करने गई तो उन्होंने बेझिझक होकर सभी पुरुषों के सामने इस बारे में बात की। इस पहल की शायद ये एक सबसे बड़ी सफलता है। इस पहल में 'प्रदान' के साथ काम करने वाली मोहिनी ने भी काफी योगदान दिया है। उन्होंने कहा, 'किसी के घर में अगर लड़कियों को मासिक धर्म से जुड़ी समस्या होती थी तो उनकी मांओ को भी उसकी जानकारी नहीं होती है। फिर हमने ट्रेनिंग देने की शुरुआत की।' मोहिनी ने आसपास के इलाकों में जाकर महिलाओं को समझाया और उन्हें ट्रेनिंग दी।

 

इस छोटी सी पहल का इतना असर हुआ है कि कभी आपस में मासिक धर्म के बारे में बात न करने वाली महिलाएं अब पुरुषों के सामने भी बेबाक होकर अपनी बात रख रही हैं। पूरे गांव और आसपास के इलाके में घरों में इसे गंभीरता से लिया जा रहा है। जब महिलाओं से पूछा गया कि पुरुषों का इस बारे में क्या सोचना है तो उन्होंने कहा कि ये तो एक स्त्री समस्या की बात है, तो पहले स्त्रियों को ही जागरूक होना पड़ेगा। हालांकि पुरुषों को भी अब ये बात समझ में आ रही है और वे महिलाओं को पूरा समर्थन दे रहे हैं।

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