जरूरतमंदों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ की सरकार कई जनकल्याणकारी योजनाएं चला रही हैं।
इन योजनाओं का बड़ा मकसद यह है छत्तीसगढ़ के ग्रामीण व गरीब खुद भी मजबूत बनें और दूसरों को भी मजबूत बनाएं। जिन्हें इन योजनाओं का लाभ मिले, वे खुद का संबल बढ़ाकर दूसरों के लिए रोजगार का रास्ता खोलें, और उन्हें रोजी-रोटी उपलब्ध करा सकें। इससे ही धीरे-धीरे पूरे छत्तीसगढ़ियों की आमदनी बढ़ती चली जाए और यह प्रदेश उन्नति पथ पर शिखर पर पहुंच सकें। गरीबों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने वाली उन्हीं योजनाओं में से एक कड़कनाथ कुक्कुट पालन भी है।
लाइवलीहुड के जरिए कड़कनाथ पालन ने ऐसी दिशा बनाई है कि किसान इस पालन से ही उद्यमी बनने की ओर अग्रसर हैं। ऐसी ही कहानी धीमर के रहने वाले राधेश्याम की भी है। राधेश्याम और उनकी पत्नी रेणुका पहले रोजगार की समस्या से परेशान थे। आर्थिक स्थिति अच्छी न थी। जैसे-तैसे करके दिन गुजर रहे थे। कभी रोजगार मिलता, तो कभी नहीं मिलता। काम मिल जाता, तो 200 से 250 रुपए दिन-भर में कमा लेते, नहीं तो बड़ी मुश्किल से अन्न की व्यवस्था हो पाती।
राधेश्याम के दिन बदलने की शुरुआत कड़कनाथ कुक्कुट पालन से हुई। उन्होंने सरकार की योजना से कड़कनाथ की हैचरी यूनिट लगाई। इस तरह उन्होंने कड़कनाथ का पालन शुरु किया। हैचरी का फायदा यह था कि कड़कनाथ के अंडे यहां गर्माहट में सिंकते और जल्द चूजे के रूप में विकसित हो जाते। ये चूजे ही बड़ी कीमत में बिकते हैं। स्थानीय तौर पर इनकी कीमत भले ही कम हो, लेकिन राजनांदगांव मुख्यालय व रायपुर में इनकी कीमत पांच सौ से एक हजार रुपए तक जाती है। इन्हें पालने वाले लोग यहीं से चूजे लेकर जाते हैं। इनकी जबरदस्त डिमांड भी है। इसका राधेश्याम को फायदा भी हो रहा है।
राधेश्याम बताते हैं कि कड़कनाथ पालन का उन्हें बहुत लाभ हुआ है। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हुई है, इसलिए ही वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में तालीम भी दिला पाने में कामयाब हुए हैं। वे बताते हैं कि दूर-दूर से लोग कड़कनाथ खरीदने आते हैं।
राधे श्याम न सिर्फ चूजे बेचते हैं बल्कि दूर-दूर से लोग उनके यहाँ आकर कड़कनाथ के मुर्गे खरीदकर ले जाते हैं। राधेश्याम फिलहाल अपने घर से ही मुर्गी-पालन केंद्र चला रहे हैं और इससे उनकी आमदनी अब हजारों में नहीं बल्कि लाखों में हो गयी है। राधेश्याम ने भविष्य के लिए भी अपनी योजनाएँ बना ली हैं। वे नये-नये मुर्गी-पालन केंद्र खोलने की तैयारी में हैं और उनका लक्ष्य मुर्गी-पालन से 6 लाख रुपये की सालाना आमदनी करने का है।
वे अकेले ऐसे ग्रामीण किसान नहीं है, जिन्हें कड़कनाथ पालन का फायदा हुआ हो, छत्तीसगढ़ में ऐसे बहुत से किसान हैं, जिन्होंने इस दिशा में आगे बढ़कर अपने आजीविका की राह आसान की। सरकार की योजना का ही असर है कि दंतेवाड़ा से निकलकर कड़कनाथ पूरे प्रदेश में जरूरतमंदों को आर्थिक मजबूती प्रदान कर रहा है।
जानकार बताते हैं कि कड़कनाथ में हाई प्रोटीन होता है और यह खाने में भी स्वादिष्ट है। इतना ही नहीं दूसरी विशेषता यह भी कि इसमें वसा कम होता है। दूसरे प्रजातियों में वसा की मात्रा 25 फीसदी तक होती है, जबकि कड़कनाथ में यह अधिकतम 1.03 तक ही होती है। इसमें कोलेस्ट्रॉल भी कम ही होता है।
यही कारण है कि इनकी सर्वाधिक डिमांड भी है। इसलिए ही इसके पालन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इनके हेचरी विकसित करने के लिए जरूरतमंदों को सब्सिडी भी दी जा रही है।