September 19, 2018

जहरीले सांपों का तमाशा दिखाकर पेट भरने वालों को मिली छत, स्कूल जाने लगे बच्चे, अब समाज की मुख्यधारा से जुड़ने लगे हैं संवरा जनजाति के लोग

जंगल से सांपों को पकड़ना। दांत निकालना। तमाशा दिखाना। फिर जो कुछ मिले उसी से पेट पालना। न सिर पर छत और न खुद का मकान। खाना बदोश जीवन। शिक्षा से अंजान। आधुनिकता परे जिनका रहन-सहन और खानपान। ऐसी ही थी इनकी पहचान। जी हां, हम बात कर रहे हैं बिलासपुर जिले के जंगलों में बसने वाली संवरा जनजाति के लोगों की। लेकिन अब इस समाज के लोग मुख्यधारा से जुड़ने लगे हैं।

उनके बच्चे स्कूल जाने लगे हैं। रहने को मकान मिल गया है। मनरेगा के तहत काम मिलने लगा है। अब ये खानाबदोश नहीं रहे। यकीन नहीं आता तो मिलिए जयलाल से। सांपों का खेल दिखाने वाला जयलाल अब खेतों में मजदूरी करता है। पत्नी शैलेंद्री के साथ मनरेगा में मजदूरी करने जाता है।

बिलासपुर के करगीकला गांव के पास प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान भी बन गया। सिर छिपाने को छत मिल गई। अब उन्हें भटकना नहीं पड़ रहा। चार बच्चे हैं। बड़ा बेटी पांचवीं में पढ़ रहा है। दूसरा बेटा आकाश तीसरी में है। बेटी सोनम और बेटा विकास अभी छोटे हैं। घर पर ही रहते हैं। जयलाल का कहना है कि सांप दिखाकर कभी पैसे मिलते तो कभी अनाज। अब सरकार अनाज तो दे ही रही है। मनरेगा में मजदूरी करके कमाई भी हो रही। अब किसी बात की चिंता नहीं। यहीं बसी है ताहुत बाई। पति कुलदेराम की छह साल पहले मौत हो गई। बुखार हुआ था। खानाबदोश जीवन की वजह से सही तरीके से इलाज न हो सका। इसलिए सांसें थम गईं। बेटे की अभी-अभी शादी हुई है। जाहिर है प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मिला तो घर बसना ही था। बहु किरण आई तो रौनक बढ़ गई। कुल मिलाकर जीवन संवर गया। अब सांप पकड़ने जैसा गैर कानूनी काम नहीं करना पड़ता। सरकार ने रहने खाने का इंतजाम कर दिया। खानाबदोश जीवन से छुटकारा मिल गया। आने वाली पीढ़ियां सुकुन से रहेंगी। पढ़ाई करेंगी। आगे बढ़ेंगी। जंगल में नहीं भटकेंगी। ताहुत बाई बहुत खुश है। सरकार को दुआएं दे रही। कह रही पीढ़ियों का भविष्य सुधार दिया सरकार ने। जयलाल और ताहुत बाई की तरह यहां रहने वाले 29 परिवार के सदस्य बेहद खुश हैं। होंगे ही। उनकी जिंदगी चैन से कट रही है। वे मुख्यधारा में आ चुके हैं। स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मुुफ्त में यूनिफार्म मिल रही है।

मध्याह्न् भोजन में पेट भर रहा। कापी-किताब का भी खर्च सरकार उठा रही। और क्या चाहिए उनको जिनका कभी कोई ठिकाना ही नहीं था, उनके सिर पर छत है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस जनजाति के लोगों की दिनचर्या सुधर गई है। अब वे भी अपनी जिंदगी का उद्देश्य तलाशने लगे हैं। बच्चों की पढ़ाई और उनके भविष्य की चिंता उन्हें भी है।


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