विषम परिस्थितियों से लड़कर अपना तथा अपने बच्चों का पेट पालना और उनकी परवरिश करना कितना कठिन होता है ये संतोषी से पूछिए। बिलासपुर में रहने वाली संतोषी चंद्राकर पहले सरकारी दफ्तरों में झाड़ू-पोछा कर एक दिन में 80 रुपए कमाती थी। आज ई-रिक्शा की मालिकिन हैं। रोजाना 300 से 500 रुपए की आमदनी होती है। अब वह बच्चों की अच्छी शिक्षा और उनके बेहतर भविष्य के सपने देख रही है।
पति ने साथ छोड़ दिया। दूसरी पत्नी के साथ रहने लगा। आर्थिक स्थिति बिगड़ी चली गई। घर में चावल तो सरकारी आ जाता। सरकारी दफ्तरों में झाड़ू-पोछा करने से जो थाेड़ा-बहुत मिलता उससे तरकारी भी खरीद लेते, लेकिन बाकि जरूरतें भी तो हैं। चार छोटे-छोटे बच्चों के कपड़े। उनकी जरूरतों के सामान। संतोषी को चिंता खाए जा रही थी। ऊपर से रोजमर्रा की जरूरत पूरा करने दुकानदारों से लिए गए छोटे-मोटे कर्ज। वह रोज सोचती कि कोई ऐसा काम किया जाए, जिससे आर्थिक स्थिति सुधरे। आमदनी बढ़ेगी तभी बच्चों का दाखिला अच्छे स्कूलों में हो सकेगा। उन्हें उनकी पसंदीदा चीजें लाकर दे सकूंगी।
संतोषी रोज सुबह काम पर जाने से पहले ये संकल्प लेकर निकलती कि आज कुछ नया शुरू करना है। शाम को लौटती तो दिनभर मिलने वालों की सलाह पर मंथन करती, लेकिन कोई ऐसा व्यवसाय नहीं सूझता था, जो कम लागत में ज्यादा आमदनी दे। एक दिन सरकारी दफ्तर में काम करते हुए उसे ई-रिक्शा योजना के बारे में पता चला। उसने गौर से सुना। पूरी जानकारी लेने के बाद दूसरे दिन उसने अपने परिचितों से सलाह ली। कुछ लोगों ने टोका कि रिक्शा चलाना महिलाओं का काम नहीं। लेकिन संतोषी ने तो ठान रखा था। वह अपनी आमदनी बढ़ाना चाहती थी। और अब वह रुकने वाली नहीं थी। उसने फौरन योजना का फायदा उठाया और ई-रिक्शा ले आई।
जैसे ही संतोषी की आमदनी बढ़ी उसके पति ने दोबारा उसे कब्जे में लेने की कोशिश की, लेकिन आर्थिक स्थिति सुधरने के बाद उसका आत्मविश्वास बढ़ चुका था। वह झांसे में नहीं आई और पति से कहा कि अब जरूरत नहीं। मैं बच्चों की परवरिश खुद कर सकती हूं। आज संतोषी खुद का ध्यान रख रही है। परिवार का खर्च चला रही है। बच्चों की अच्छी परवरिश कर रही है और परिवार के व्यवहार भी निभा रही है। उसका कहना है कि सरकार की मदद से परिवार सुखी है। मैं खुश हूं।
आर्थिक तंगी से जूझ रही ऐसी कई महिलाएं हैं जो इस सरकारी योजना का फायदा उठाकर खुद पर निर्भर हो चुकी हैं। बिलासपुर के विवेकानंद उद्यान, दीनदयाल उद्यान,ऊर्जा पार्क, स्मृति वन, यातायात पार्क, बिलासा ताल आदि के आसपास ऐसे कई ई-रिक्शा चालक नजर आएंगे, जिन्हें सरकारी सहायता दी गई है। सभी अपनी-अपनी जगह मेहनत कर रहे हैं और बेहतर भविष्य के सपने संजो रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि सरकार से यही उम्मीद रहती है कि उनके प्रयास से लोगों का जीवन स्तर सुधरे। रमन सरकार ऐसी कई योजनाएं चला रही है।
ऐसे लोग जो खुद का व्यवसाय कर आमदनी बढ़ाना चाहते हैं, उनके लिए राज्य सरकार ई-रिक्शा सब्सिडी योजना लेकर आई है। इसके तहत ई-रिक्शा की खरीद पर श्रम विभाग से 50,000 रुपए तक की सब्सिडी प्रदान की जा रही है। इस योजना के तहत ई-रिक्शा की कुल लागत का एक तिहाई हिस्सा राज्य सरकार वहन कर रही है। इससे आर्थिक रूप से कमजोर रिक्शा खींचने वालों को भी फायदा होगा।