गुड़िया-सी लडकी का नाम है अनन्या चंद्राकर। अनन्या सभी की प्यारी बिटिया हैं। पंडरिया तहसील के ग्राम धनेली में रहने वाली अनन्या के पिता भागीरथी चंद्राकर को यह पता भी न था कि उनकी इस प्यारी बिटिया के दिल में छेद है। इसके कारण वह बीमार रहती और उसका शारीरिक विकास थम सा गया। भागीरथी बताते हैं कि उन्हें बिल्कुल भी यह अंदाजा न था, कि अनन्या को इतनी दिक्कत है। वह तीसरी कक्षा में कुंडा स्कूल में पढ़ने जाती थी। अनन्या से भी एक और छोटी बेटी है। जब छोटी बिटिया भी अनन्या के हाइट के बराबर हो गई, तो चिंता सताने लगी।
इसी बीच कुछ डॉक्टर स्कूल में बच्चों के चेकअप के लिए आए। इनमें ही चिरायु के डॉक्टर रजनीश सिंह भी थे। उन्होंने सभी बच्चों को बारी-बारी चेकअप किया। अनन्या के चेकअप के बाद उन्होंने मुझे बताया कि बिटिया को हार्ट संबंधी प्राब्लम है। इसके बाद डॉक्टर ने अपनी ओर से इसके इलाज के लिए भरपूर प्रयास किए। डॉक्टर ने अनन्या का और चेकअप कराया, बाद में रिपोर्ट में यह निकलकर आया कि अनन्या के दिल में छेद है, लेकिन इसे इलाज के बाद ठीक किया जा सकता है। चिरायु की टीम ने इनके ऑनलाइन कागजात भेजे और बिलासपुर सिम्स में सफल ऑपरेशन किया गया। अब बिटिया को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है। यदि समय पर यह पता न चलता, तो ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले हम लोग कुछ भी नहीं कर पाते। बल्कि बिटिया को आगे चलकर और परेशानी होती।
इसी तरह की कहानी बच्चे खिमेश की भी है। खिमेश के पिता सुनील कुमार मोतिमपुर पंडरिया के रहने वाले हैं। उनके परिवार में 9 सदस्य हैं। पत्नी, दादा-दादी, मां-बाप और दो बच्चे। सुनील के दूसरे बच्चे का नाम खिमेश है। जन्म से खिमेश का पैर मुड़ा हुआ था, जिससे ऐसा लग रहा था, कि वह भविष्य में चलफिर नहीं पाएगा। तीन माह हो गए थे उसके जन्म को, फिर भी इस संबंध में कोई जानकारी सुनील को नहीं थी। वह यह सोचकर परेशान थे, कि आखिर बच्चे का इलाज कैसे कराया जाए। इसका भविष्य क्या होगा, यही चिंता उन्हें खाए जाती थी। कुछ दिन बाद चिरायु के डॉ. रघुवीर गांव में आए। हमने बच्चे को दिखाया, तो उन्होंने हमें बिलासपुर जाने की सलाह दी और आगे की पूरी प्रक्रिया भी उन्होंने ही की। बच्चे को इलाज के लिए बिलासपुर जिला अस्पताल में भेजा गया। पहले पैर में प्लास्टर लगाया गया, फिर कुछ दिनों बाद छोटा सा ऑपरेशन हुआ। इसके बाद फिर प्लास्टर लगाया गया। इसके बाद खिमेश को एक जूता पहनाया गया। यह जूता खिमेश को 3 साल तक पहनाकर रखना होगा। यदि बच्चे का इलाज ठीक तरीके से नहीं किया होता, या चिरायु की मदद हमें नहीं मिलती, तो मेरा बच्चा ठीक तरीके से चल न पाता। अब मैं खुश हूं कि यह चलने के लायक हो गया है। यही इलाज यदि मैं प्राइवेट अस्पताल में कराता, तो 60-70 हजार रुपए लगते, लेकिन शासन की मदद से चिरायु योजना से मुफ्त में इलाज हो गया और बेटा चलने के लायक हो गया है।
यह कुछ हकीकत है, जिसके कारण बच्चे फिर से खिलखिला रहे हैं। ऐसे लाखों बच्चों का इलाज छत्तीसगढ़ में चिरायु योजना से लगातार जारी है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत लाखों बच्चों के स्वास्थ्य जांच कराते हुए जरूरी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा चुकी है। अकेले कबीरधाम जिले में ही 1 लाख 70 हजार से भी ज्यादा बच्चों को मुफ्त इलाज मुहैया कराई गई है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य शून्य से 18 वर्ष के बच्चों का चार चरणों में स्क्रीनिंग किया जाना है। इसके बाद बच्चों में 35 तरह की बीमारियों का चिरायु के जरिए इलाज का प्रावधान है। जांच में पाई गई बीमारी के उपचार के लिए छत्तीसगढ़ व देश के 100 से अधिक उच्च संस्थानों में बच्चों को भेजा जाता है।