चिकित्सा के क्षेत्र में बालोद की तरक्की देखनी हो तो मातृ-शिशु अस्पताल में हो रहे नवजात शिशुओं के इलाज पर नजर डालिए। सितंबर 2017 में 100 बिस्तर वाले इस अस्पताल में विशेष नवजात देखभाल इकाई (एसएनसीयू) की शुरुआत हुई। तब से अब तक वहां के विशेषज्ञों ने 125 बच्चों की जान बचाई है। इन्हीं में से एक है जिले से 10 किमी दूर रेवती नवागांव में रहने वाली 22 वर्षीय चमेली बाई साहू का बच्चा।
मातृ-शिशु अस्पताल में खुले एसएनसीयू का महत्व तो कोई चमेली से ही पूछे। उसकी पहली डिलीवरी होने वाली थी। पति कुलेश्वर साहू और सास-ससुर सहित पूरा परिवार खुश था। घर में पहली संतान आने वाली थी। खुशी तो होगी ही। फिर नौ माह बाद वह पल आ ही गया, जब 22 सितंबर को चमेली और कुलेश्वर के पहले बच्चे का जन्म हुआ। तब वह जगन्नाथपुर सांकरा में थी। खबर आई तो ससुराल में खूब पटाखे फूटे। मिइाईयां भी बांटी गईं। सभी ने शुभकामनाएं दीं। चाचा-चाची, मामा-मामी, भाई-बहन सहित सभी रिश्तेदारों और दोस्तों के फोन भी आए।
यह सिलसिला दो दिनों तक चलता रहा। फिर अचानक बच्चे की आंख और शरीर पीला पड़ने लगा। बच्चा कमजोर दिखने लगा। परिवार वाले घबराए। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों से भी केस नहीं संभला। तब उन्होंने जिला अस्पताल के मातृ-शिशु अस्पताल ले जाने की सलाह दी। बच्चे के बीमार होने की खबर पाकर कुलेश्वर भी जगन्नाथपुर सांकरा पहुंच चुका था। उसने डॉक्टरों से चर्चा की। डॉक्टरों ने उसे बताया कि बालोद में बड़ा अस्पताल है और वहां नवजात की देखभाल के लिए नया यूनिट खुला है। वहां के विशेषज्ञ इसका इलाज करेंगे। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों ने इस अस्पताल की खासियत बताई और उन्हें रेफर किया।
डॉक्टरों की सलाह के बाद कुलेश्वर अपनी पत्नी चमेली और नवजात बच्चे को लेकर मातृ-शिशु अस्पताल पहुंचा। वहां पहुंचते ही स्टाफ इलाज में जुट गया। बच्चे को फौरन एसएनसीयू में एडमिट किया गया और वहां मौजूद विशेषज्ञ डॉक्टर उसके इलाज में जुट गए। दो-तीन दिन के बाद डॉक्टरों ने कुलेश्वर को बताया कि बच्चा बिल्कुल ठीक है। इसके बाद पूरे परिवार ने राहत की सांस ली। बच्चे के स्वस्थ होने की खबर पाकर चमेली के गले से निवाला उतरा और परिवार की खुशियां लौट आई। इस पूरे इलाज के दौरान कुलेश्वर को एक रुपया भी नहीं लगा। पूरा उपचार फ्री में हुआ।
दरअसल, बच्चे की तबियत बिगड़ने के बाद कुलेश्वर सहित पूरा परिवार उपचार में खर्च होने वाली राशि को लेकर चिंतित थे। हों भी क्यों न! तीन एकड़ जमीन ही तो है, जिस पर खेती कर वे अपना जीवन-यापन कर रहे। इससे भी घर का बजट नहीं संभलता तो मजदूरी करते हैं। अब ऐसे में नवजात पर इतनी बड़ी विपत्ति आ जाए तो आर्थिक कमजोरी चिंता का कारण बनती ही है। लेकिन मातृ-शिशु अस्पताल में हुए इलाज के बाद जब पता चला कि उपचार पूरी तरह फ्री है तो सभी ने लंबी सांस ली और सरकार का शुक्रिया अदा किया।
चमेली और कुलेश्वर की तरह कितने ही माता-पिता अपने नवजात को लेकर यहां आ चुके हैं और यहां के विशेषज्ञों ने उन्हें जीवनदान दिया है। इस अस्पताल में गर्भवती महिलाओं का भी पूरा इलाज किया जाता है। यहां मौजूद गायनेकोलॉजिस्ट गर्भ के दौरान उन्हें पौष्टिक भोजन लेने और सही देखभाल के तरीके भी बताते हैं।