July 20, 2018

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में बंद हुए स्कूलों को फिर से खोलने की तैयारी

प्रशिक्षण देकर इलाके के बेरोजगार युवाओं को लगाया जाएगा पढ़ाने में 

छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध इलाका है बस्तर, जहां प्राकृतिक सौंदर्य और शांति को भंग करने वाले हिंसक नक्सलवाद का साम्राज्य भी है। यहां से आये दिन अब परिवर्तन की अच्छी ख़बरें सुनने को मिल रही हैं। बस्तर का एक जिला सुकमा जो सर्वाधिक नक्सली हिंसा से प्रभावित है वहां के युवा कलेक्टर जय प्रकाश मौर्य हिंसा की अग्नि के बीच शिक्षा का दीपक प्रज्ज्वलित करने जा रहे हैं। जिले का अति संवेदनशील विकासखण्ड कोन्टा जहाँ  नक्सलवाद के कारण सैकड़ों स्कूल बंद पड़े हैं उन स्कूलों को दुबारा खोलने की तैयारी की जा रही है। वर्तमान में 123 स्कूल बंद हैं इनमें 102 प्राईमरी और 21 मीडिल स्कूल हैं। इन बंद पड़े स्कूलों में 62 स्कूल  का चयन किया गया है जिन्हें पुनः संचालित करने की तैयारी की जा रही है। सब कुछ दुरुस्त रहा तो 15 अगस्त के बाद बंद शालाओं में रौनक लौट आयेगी और बस्तर में बच्चों को शिक्षा नसीब हो सकेगी।

जिला प्रशासन ने कोन्टा विकासखण्ड के बंद पड़े स्कूलों को फिर से संचालित करने लिए एक नया सेटअप तैयार किया है। ब्लॉक के प्रत्येक ग्राम पंचायत से बेरोजगार युवकों को मौका दिया जा रहा है। शिक्षादूत के नाम से युवकों को शालाओं में पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी जायेगी। इन शालाओं में अध्यापन कार्य सम्पन्न कराने के एवज में जिला खनिज निधी से युवकों को प्रति माह पांच हजार रुपये मानदेय के रूप में दिये जायेंगे। वर्तमान में 61 युवकों ने इसके लिए अपना नाम दिया है। जिला प्रशासन इन युवकों को ट्रेनिंग भी दे रहा है। एक माह तक चलने वाली ट्रेनिंग में 'शिक्षादूतों' को बच्चों को पढ़ाने के तरीके बताये जा रहे हैं। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 'शिक्षादूत' अपने-अपने संबंधित पंचायतों में जाकर पढ़ाई कराएंगे।

तीन हजार बच्चे जुड़ेंगे शिक्षा से

जिला प्रशासन के शिक्षादूत प्रयोग से कोन्टा विकासखण्ड के करीब तीन हजार से ज्यादा बच्चे शिक्षा से जुड़ जायेंगे। एक सर्वे के अनुसार कोन्टा ब्लॉक में ही 6 से 14 वर्ष के करीब 20 हजार से ज्यादा बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। भवन नहीं होने के कारण इस सत्र में तत्कालिक व्यवस्था के तौर पर झोपड़ियों में स्कूल संचालित किये जायेंगे। शालाओं के नियमित संचालन होने पर पंचायतों के माध्यम से स्कूल भवन का निर्माण किया जायेगा।

प्रयोग सफल हुआ तो रेगुलर शिक्षकों की होगी नियुक्ति

सलवा जुडूम के दौरान कोन्टा विकासखण्ड में सौ से ज्यादा स्कूलों के बंद होने के बाद शिक्षकों को दीगर शालाओं में संलग्न कर दिया गया था । जिला प्रशासन ने कई बार व्यवस्था दुरूस्त करने की कोशिश की, लेकिन नक्सली भय के चलते शिक्षकों ने स्कूल जाने से इंकार कर दिया था। जिले के छठवें कलेक्टर के रूप में कार्यभार संभालने के बाद जय प्रकाश मौर्य ने इसे गंभीरता से लिया और बंद स्कूलों को पुनः संचालित करने की योजना बनाई।

एक अभियान और बंद हो गये सैकड़ों स्कूल

छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ सरकार के संरक्षण में सन 2006 में शुरू हुए सलावा जुडूम के बाद कोन्टा विकासखण्ड के अधिकांश गांव वीरान हो गये। गांव छोड़कर ग्रामीण शिविरों में जा बसे। नक्सलियों को यह भय था कि सुरक्षाबल जंगल में घुसकर कार्रवाई कर सकता है। इसलिए नक्सलियों सभी सरकारी भवनों को नष्ट कर दिया जिनमें अधिकांश स्कूल व आश्रम शालायें थी। सुरक्षाबलों और नक्सली की लड़ाई में मासूम नौनिहालों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। कोन्टा ब्लाक के करीब डेढ़ सौ से ज्यादा शालाओं को बंद कर दिया गया। कई आश्रम शालाओं को ब्लॉक मुख्यालय या सड़क किनारे शिफ्ट कर दिया।

5 जुलाई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम को पूरी तरह खत्म करने का फैसला सुनाया। लेकिन शासन-प्रशासन ने शिफ्ट किये गये आश्रम-शालाओं को पुनः मूल स्थान पर संचालित करने का प्रयास नहीं किया।

लेकिन अब उम्मीद की एक किरण लेकर कलेक्टर जयप्रकाश मौर्य निकले हैं। कलेक्टर को भरोसा है कि सुदूर जंगलों में रहने वाले आदिवासी बच्चों को शिक्षा मिल के रहेगी। वे धीरे धीरे नष्ट किये स्कूलों को को भी फिर से बनाने की मुहिम भी शुरू करेंगे।

 

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