June 25, 2018

छत्तीसगढ़ः इस नक्सल प्रभावित क्षेत्र में शहद उत्पादन से आत्मनिर्भर बन रहीं महिलाएं

इस उद्देश्य के मद्देनज़र यह मुहिम 15-20 हज़ार स्थानीय लोगों को स्थायी रोज़गार देकर, पूरी तरह से आत्मनिर्भर बना रही है। बस्तर हनी के माध्यम से दंतेवाड़ा की 200 महिलाओं और 800 परिवारों के साथ-साथ बीजापुर के 150 परिवारों को रोज़गार मिल रहा है।

मधुमक्खी पालन के बारे में आपने कई जगहों पर पढ़ा होगा। मधुमक्खी के छत्ते से शहद किस तरह निकाला जाता है, इसके बारे में भी जानकारी अधिकतर पाठकों को जानकारी होगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मधुमक्खियों द्वारा छत्ता और शहद बनाना, एक सकारात्मक सामुदायिक प्रयास का कितना उम्दा उदाहरण है? आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में मधुमक्खी पालन करने वाले किसान, मधुमक्खियों से ही प्रेरणा लेते हुए शहद का उत्पादन और व्यापार कर रहे हैं। ये किसान 'बस्तर हनी' ब्रैंड के अंतर्गत अपना उत्पाद लोगों तक पहुंचा रहे हैं, जिसे बेहद पसंद किया जा रहा है क्योंकि यह पूरी तरह से प्राकृतिक है।

बस्तर हनी के उत्पादन की पूरी प्रक्रिया न सिर्फ़ एक सामुदायिक प्रयास का बेहतरीन उदाहरण पेश करती है, बल्कि मानवीय मूल्यों का भी पूरा ख़्याल रखती है। मधुमक्खी पालन और शहद व्यापार की इस मुहिम से जुड़े एक किसान राम नरेंद्र से बातचीत करने पर जानकारी मिली कि परंपरागत तौर पर मधुमक्खियों के छत्ते से शहद निकालने की प्रक्रिया में मधुमक्खियों का मार दिया जाता था, लेकिन पिछले कुछ समय से किसानों को तकनीकी परामर्श के माध्यम से ऐसे ईको-फ़्रेंडली तरीक़े सिखाए जा रहे हैं, जिनमें मधुमक्खियों को मारने की ज़रूरत नहीं होती। इतना ही नहीं किसानों को ऐसी फ़सलों और पौधों इत्यादि के बारे में भी जागरूक किया जा रहा है, जिनके माध्यम से पॉलिनेशन की प्रक्रिया बेहतर होती है और परिणामस्वरूप उत्पादन भी अधिक मिलता है। किसानों को शहद उत्पादन के लिए इस तरह से प्रशिक्षित करने का पूरा श्रेय छत्तीसगढ़ काउंसिल ऑफ़ साइंस ऐंड टेक्नॉलजी (सीजीसीओएसटी) को जाता है।

छत्तीसगढ़ सरकार और प्रशासन के सकारात्मक प्रयासों की फ़ेहरिस्त यहीं पर ख़त्म नहीं होती। प्रशासन का लक्ष्य है कि इस औद्योगिक गतिविधि के माध्यम से स्थानीय महिलाओं और आदिवासी प्रजातियों को भी रोज़गार और आजीविका चलाने के लिए सक्षम और आत्मनिर्भर बनाया जाए। इस उद्देश्य के मद्देनज़र यह मुहिम 15-20 हज़ार स्थानीय लोगों को स्थायी रोज़गार देकर, पूरी तरह से आत्मनिर्भर बना रही है। बस्तर हनी के माध्यम से दंतेवाड़ा की 200 महिलाओं और 800 परिवारों के साथ-साथ बीजापुर के 150 परिवारों को रोज़गार मिल रहा है।

शहद की पेटियांप्रशासनिक मदद के संबंध में चर्चा करते हुए मधुमक्खी पालन करने वाले राम नरेंद्र बताते हैं कि दंतेवाड़ा के ज़िलाधिकारी सौरभ कुमार सिंह ने बस्तर हनी को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रशासनिक मदद दी, ताकि क्षेत्र में आर्थिक रूप से पिछड़े तबके को आत्मनिर्भर बनाया जा सके। प्रशासन की मदद से पुणे स्थित सेंट्रल बी रिसर्च और ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट से विशेज्ञषों को बुलाया गया, जिन्होंने मधुमक्खी पालन की बारीक़ियों से स्थानीय लोगों को अवगत कराया। इतना ही नहीं, हर नए बॉक्स को बनाने की लागत का 80 प्रतिशत खर्चा ज़िला प्रशासन देता है। दंतेवाड़ा में मधुमक्खी पालन करने वाला समुदाय आज की तारीख़ में 450 बीकीपिंग बॉक्सेज़ के माध्यम से उत्पादन कर रहा है।

जिन बॉक्सेज़ या बक्सों की हम बात कर रहे हैं, उनसे भी कई ख़ासियतें जुड़ी हुई हैं। हर बॉक्स में एक रानी मक्खी (क्वीन बी) और 10 हज़ार अन्य मधुमक्खियां होती हैं। किसानों से मिली जानकारी के मुताबिक़, ये मधुमक्खियां सिराना इंडिया प्रजाती की हैं, जिन्हें कर्नाटक से लाया गया है। उत्पादन की अगर बात करें तो हर साल हर बॉक्स से लगभग 10-20 किलो तक शहद का उत्पादन होता है। सामूहिक रूप से हर साल लगभग 4-5 टन शहद का उत्पादन किया जा रहा है। किसानों को मिलने वाले लाभ के बारे में जानकारी देते हुए राम नरेंद्र ने जानकारी दी कि हर किसान को 1 किलो शहद के लिए 300 रुपए का भुगतान किया जाता है।

हाल ही में, बस्तर हनी की टीम ने इटैलियन मूल की मेलिफ़ेरा प्रजाति के साथ भी प्रयोग शुरू किया है, जिसके माध्यम से और भी अधिक उत्पादन मिलने की संभावना है। सीजीसीओएसटी के साथ-साथ खादी ग्रामोद्योग भी इस सकारात्मक औद्योगिक मुहिम में अपनी भूमिका अदा कर रहा है। खादी ग्रामोद्योग ने 78 आदिवासी परिवारों को मेलिफ़ेरा मधुमक्खी के पालन के लिए 10 बक्से उपलब्ध कराए हैं।

आपको बता दें कि उत्पादन को बेचने की ज़िम्मेदारी बस्तर हनी की टीम की है, जो विभिन्न डिस्ट्रीब्यूटर्स की मदद से ऑफ़लाइन और ऑनलाइन, दोनों ही माध्यमों से किसानों को उनकी मेहनत का पारितोषिक दिलाने का प्रयास कर रही है। इन बक्सों के साथ ईको-फ़्रेडली उत्पादन की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद (लगभग दो सालों तक), इनका मालिकाना हक देख-रेख करने वाले किसान को दे दिया जाता है। छत्तीसगढ़ सरकार और दंतेवाड़ा ज़िला प्रशासन चाहते हैं कि ये किसान अपने परंपरागत उद्योग से मुंह न मोड़े और अपनी क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल करें। राम नरेंद्र कहते हैं, "हम लोगों को समझाना चाहते हैं कि यह उनके लिए आय का एक स्थाई ज़रिया बन सकता है। कम उत्पादन में भी उन्हें इस काम से जुड़े रहने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना भी हमारा लक्ष्य है। वे (किसान) लगे रहें और हिम्मत न हारें, हम इसी उद्देश्य के साथ आगे बढ़ रहे हैं।"

छत्तीसगढ़ के हालिया दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने भी बस्तर हनी का ज़ायका चखा और किसानों की मेहनत की जमकर सराहना की। इसके अलावा नीति आयोग के चेयरमैन अमिताभ कांत से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह समेत कई बड़ी हस्तियां दंतेवाड़ा में मधुमक्खी पालन करने व समुदाय के उम्दा प्रयासों के साक्षी बन चुकी हैं।

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