राजनांदगांव के मध्यमवर्गीय व गरीब परिवार के 130 होनहार बच्चों को छत्तीसगढ़ सरकार के आरोहण बीपीओ का ऐसा लाभ मिला कि वे अपने उज्जवल भविष्य की ओर दोनों बाहें फैलाकर आगे बढ़ रहे हैं। इन्हीं युवाओं में नावेद, मधु और शोएबा जैसे नाम भी हैं। ये नाम बड़े साधारण हो सकते हैं, लेकिन सुनहरे भविष्य की चमक ली हुई इनकी आंखें कहती हैं, कि वह समय दूर नहीं जब इनका काम असाधारण होगा। यह सब आरोहण जैसी योजनाओं से ही संभव हो सका है।
नावेद मिर्जा, उम्र 22 वर्ष। नावेद अंबागढ़ चौकी के रहने वाले हैं और उन्होंने बीसीए किया है। पढ़ाई के बाद उन्होंने अपनी पहले की कुछ जमा पूंजी से कम्प्यूटर कोचिंग सेंटर खोला। इस कोचिंग सेंटर में जो सीखने आते थे, उनको वे कोचिंग देते थे। इस तरह महीने में उन्हें लगभग 14 हजार रुपए की आमदनी हो जाती थी। लेकिन वह भी जरूरी नहीं कि हर महीने हो, क्योंकि यदि कोई प्रशिक्षार्थी छोड़ गया, तो यह रुपए भी नहीं मिलते थे। कुछ दिनों बाद नावेद को लाइवलीहुड कॉलेज के बारे में पता चला। उन्हें यह जानकारी मिली की छत्तीसगढ़ सरकार बीपीओ यानी बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग के बारे में प्रशिक्षण देती है। उन्हें लगा कि यह अच्छा रास्ता हो सकता है आगे जाने का। चूंकि उन्हें कम्प्यूटर का कामकाज भी आता था, तो उनके लिए यह ट्रेनिंग एक लिहाज से आसान भी थी। उन्होंने अपना कोचिंग सेंटर छोड़कर बीपीओ के लिए अप्लाई किया। उनका इस प्रशिक्षण के लिए सलेक्शन हो गया। उन्हें छत्तीसगढ़ सरकार की योजना के तहत 45 दिन की ट्रेनिंग दी गई और इस ट्रेनिंग के साथ ही उन्हें डाटा एंट्री अॉपरेटर की नौकरी मिल गई। तकरीबन 8 हजार रुपए उनका मेहनताना तय हुआ। नावेद बताते हैं कि एक रकम तो निश्चित हो गई, जो हर महीने मिलेंगे ही। उनका कहना है कि यदि कम्प्यूटर कोचिंग सेंटर सही तरीके से न चल पाता, या चल भी जाता, तो भी वे सीमित होकर रह जाते। अब तरक्की की राह नजर आ रही है। इस फील्ड में प्रमोशन के साथ आगे बढ़ पाएंगे। पहले ट्रेनर बनेंगे, फिर बड़े शहरों में काम कर पाएंगे। यदि सबकुछ अच्छा रहा, जैसे वर्तमान में है, तो विदेश में भी काम करने का अवसर मिल सकता है।
ऐसी ही शोएबा खान की कहानी भी है। टीवी मैकेनिक पिता की बेटी शोएबा ने परिवार की आर्थिक परिस्थितियों को मजबूत करने काम करने की ठानी। वह फिलहाल बीएससी के सेकंड ईयर में कम्प्यूटर साइंस व मैथ्स जैसे विषयों के साथ पढ़ रही हैं। शोएबा ने भी बीपीओ की ट्रेनिंग ली। शोएबा को लगता है कि उनके जैसे कई लोगों को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं, अब वह राजनांदगांव से बाहर जाकर काम कर सकेंगी। वहीं उनके पिता को अपनी इस बिटिया पर गर्व है कि वह अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने की ओर आगे बढ़ रही है।
किसान पिता की महज 25 साल की बेटी मधु देवांगन भी उन युवतियों में है, जो अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है। छत्तीसगढ़ सरकार के ‘आरोहण’ बीपीओ प्रशिक्षण के जरिए मधु को यह मौका मिला है। मधु के घर में माता-पिता, भाई व बहन हैं। पिता डोंगरगांव में खेती करते हैं। पिता की आमदनी महीने में करीब 7-8 हजार रुपए है। ऐसे में बड़ी मुश्किल से परिवार चलता है। यह देखते हुए ही मधु ने बीपीओ ट्रेनिंग करने के बारे में सोचा। हॉस्टल में रहकर उन्होंने ट्रेनिंग ली। अब यही ट्रेनिंग उनके उज्जवल भविष्य का मजबूत आधार बन रहा है।