June 28, 2018

बागवां की विरासत में इंदिराजी की वह 'आम' वाली चिट्ठी

प्रतिकूल मौसम के बावजूद इस बार छत्तीसगढ़ में आम की पैदावार अच्छी होने से किसानों के चेहरे खिले हुए हैं। लेकिन जगदलपुर के बुजुर्ग बागवां कमलेश पंतलू की खुशहाली का राज तो कुछ और ही है, उनके पास इंदिरा गांधी की वह चौवालीस साल पुरानी चिट्ठी जो है!

कमलेश पुंतलूछत्तीसगढ़ में तो आम की फसल किसानों को खुशहाल कर रही है लेकिन देश के बाकी हिस्सों में इसकी उपज बाजार के सिरे से कुछ और ही कहानी कह रही है। प्रतिकूल मौसम से उत्पादन घटा है, जबकि सरकार आम का निर्यात बढ़ाने की फिराक में रहती है।

छत्तीसगढ़ में इस बार आम से लदे पेड़ों की अलग कहानी है और इंदिरा गांधी से जुड़ी बुजुर्ग बागवां कमलेश पंतलू की अलग कहानी, जिनके आम के तोहफे ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को प्रशंसा पत्र लिखने के लिए भावुक कर दिया था। राज्य के इस ख्यात बागवां की दास्तान जानने से पहले देखते हैं कि इस बार आम की फसल क्या बयान कर रही है। इस बार प्रदेश के बालोद इलाके में फलों के राजा आम की फसल ने किसानों के चेहरों पर रौनक बिखेर दी है। पेड़ों में फल के लदान ने किसानों के मोटे मुनाफे का द्वार खोल दिया है। ज्यादातर बाग आम से लदे हुए हैं। पेड़ों में नजर आ रहे फल भरपूर पैदावार की दास्तान सुना रहे हैं। खुशखबरी ये रही कि अनुकूल मौसम के कारण इस बार वृक्षों पर आम के फल समय से एक माह पहले ही आ गए थे। मार्च से ही बाजार में हाइब्रिड कच्चे आम मिलने लगे थे। बालोद जिला आमों की फसल के लिए मशहूर है। जिले के सभी ब्लाकों में आम के बगीचे हैं। ज्यादातर आम देसी प्रजाति के हैं। कलमी आम भी भरपूर उपज दे रहे हैं। बाजार में इस बार बेहतर आवक से किसानों को अच्छी कमाई हो रही है। प्रति किलो 40 से 50 रुपए तक की कमाई हो रही है। बागवानों बताते हैं कि कई साल बाद इस तरह आम की फसल बागों में उतरी है।

छत्तीसगढ़ में तो आम की फसल किसानों को खुशहाल कर रही है लेकिन देश के बाकी हिस्सों में इसकी उपज बाजार के सिरे से कुछ और ही कहानी कह रही है। प्रतिकूल मौसम से उत्पादन घटा है, जबकि सरकार आम का निर्यात बढ़ाने की फिराक में रहती है। उत्तर-पूर्वी राज्यों में पहले गर्मी, फिर ठंड और उसके बाद बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि से इस साल आम की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। आम में बौर आने के खास समय जनवरी और फरवरी में मौसम अचानक गर्म हो गया। इसके बाद मौसम जल्द ठंडा पड़ गया और अब फिर गर्मी बढ़ गई। आम की अगेती फसल तोड़े जाने से पहले उत्तर-पूर्वी राज्यों समेत प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में ओलावृष्टि हुई, जिससे बड़े पैमाने पर फसल को नुकसान हुआ।

इस बार आम के सीजन की शुरुआत अल्फांसो प्रजाति के साथ हुई। इसकी मॉडल कीमत शुरुआत में 18 रुपए प्रति किलो थी, जो बढ़कर 30 रुपये किलो तक पहुंच गई लेकिन अप्रैल के दूसरे सप्ताह में बाजार भाव गिरकर 14 रुपये प्रति किलोग्राम तक आ गया, फिर बढ़कर 20 रुपए हो गया, जबकि खुदरा बाजार में केसर प्रजाति का आम सौ रुपए प्रति किलो तक बिक रहा है, जो पिछले साल से चालीस प्रतिशत तक महंगा है। किसान उपज में इस बार इस फसल का रकबा 10-15 फीसदी कम होने की भी जानकारी दे रहे हैं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने जनवरी 2018 में जारी अपने पहले अग्रिम अनुमान में कहा था कि इस सीजन में देश में आम का उत्पादन पांच फीसदी बढ़कर 207 लाख टन रहेगा। यह पिछले साल 195 लाख टन था।

देश की फल निर्यातक एक कंपनी के मुताबिक कम उत्पादन के अनुमानों के बावजूद इस बार आम की आपूर्ति सामान्य है लेकिन आम की कुछ प्रजातियों की सप्लाई घटी है। परंपरागत बाजारों के अलावा चीन, कजाकस्तान, दक्षिण कोरिया और ईरान में भारत की बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। उधर, अमेरिका और यूरोपीय संघ भी आम का निर्यात बढ़ाने पर नजर गड़ाए हैं। गौरतलब है कि हमारा देश मुख्य रूप से दशहरी, बादामी, हापुस, सफेदा और तोतापरी का निर्यात करता है। ईरान ने भारत से आम आयात के लिए अपना बाजार पिछले साल खोला था। भारत से कुछ निर्यात किया गया। इससे ईरानी बाजार में भारत को पाकिस्तान की कुछ हिस्सेदारी हासिल करने में सफलता मिली है।

फिलहाल, छत्तीसगढ़ के जिला जगदलपुर में गीदम मार्ग स्थित पंडरीपानी गांव के बुजुर्ग बागवां कमलेश पंतलू के बस्तर वाले आम के बगीचे की बात करते हैं। जब भी पंतलू का बगीचा आमों से निहाल होता है, पंतलू को पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की याद ताजा हो जाती है। वर्ष 1974 में इंदिरा गांधी के बस्तर प्रवास के दौरान अपने पिता के साथ सर्किट हाउस जकर पंतलू ने उनको आम का तोहफा दिया था। इंदिरा जी ने उन आमों का स्वाद चखने के बाद नौ फरवरी 1974 को प्रधानमंत्री भवन के माध्यम से पंतलू को प्रेषित प्रशंसा पत्र में मीठे तोहफे की दिल से सराहना की थी। पंतलू उस पत्र को आज भी अपने पास सहेज कर रखे हुए हैं। अपने 25 हेक्टेयर में पसरे आम के बगीचे के मालिक पंतलू स्वयं को इस बाग का चौकीदार मानते हुए बताते हैं कि 85 साल पहले उनके दादा एच व्ही व्ही नरसिंह मूर्ति पंतलू ने इस बगीचे को तैयार किया था।

वे जब देश के अलग- अलग हिस्सों में तीर्थयात्राओं पर जाते थे, वहां से चुन-चुन कर आम की प्रजातियां ले आकर इस बगीचे को आबाद करते रहे। इस तरह वह आम की कुल 85 प्रजातियां बस्तर ले आए थे। उनमें से 55 प्रजातियां आज भी उनके बगीचे में हैं। यहां के आमों को उद्यानिकी विभाग द्वारा आयोजित कई प्रदर्शनियों में इनाम मिल चुका है। जगदलपुर के कई प्रतिष्ठित परिवारों ने उनसे ही आम की प्रजातियां प्राप्त कर बगीचा लगवाया है। पंतलू बताते हैं कि इंदिरा जी का पत्र मिलने के बाद आम के वृक्षों में उनकी आस्था और बढ़ गई। अपने बगीचे में पहुंचने वालों को बड़ी भावुकता से इंदिराजी की वह चिट्ठी दिखाया करते हैं। अपने दादाजी की तरह वह भी आम बगीचा तैयार करने में लोगों की मदद करने लगे। वह कहते हैं कि 'आम लगाओ- अमर हो जाओ।'

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