ये कहानी है बालोद जिले के जुंगेरा गांव में रहने वाले 56 वर्षीय किसान दुर्जन सिंह की। चार भाईयों के संयुक्त परिवार में वे सबसे बड़े हैं। कुछ दिनों पहले तक यह परिवार भी पांच एकड़ पुस्तैनी जमीन पर पारंपरिक खेती कर जीवन यापन कर रहा था। जरूरत पड़ने पर चारों भाई और उनकी पत्नियां भी मजदूरी करने जाते थे, लेकिन सहकारी बैंक से 12 लाख रुपए लोन लेकर दूध का व्यवसाय शुरू करने के बाद वे अपने कारोबार को बढ़ाने में ही हाथ बंटा रहे हैं। इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए सरकार की तरफ से उन्हें 3.9 लाख का अनुदान भी मिला है।
दुर्जन अपने परिवार में सबसे बड़े हैं। दूसरे भाई का नाम पूरन लाल है। फिर ज्ञानिक राम और चौथे हैं हरकनाम। दुर्जन का एक लड़का है दुष्यंत। दुष्यंत की पत्नी और बच्चे भी साथ रहते हैं। कुल मिलाकर चारों भाईयों की संतानों और पोते-पोतियों का खाना एक ही रसोई में पकता है। बरसों से चली आ रही पारंपरिक खेती में धान, गेहूं, चना आदि उगाकर बजट संभालना मुश्किल हो रहा था। उस पर बच्चों की पढ़ाई और दूसरे खर्च अलग। तब सभी ने मिलकर कुछ नया करने की ठानी।
अब, जब नए व्यवसाय की तलाश शुरू हुई तो शासन की योजनाओं की जानकारी लेनी शुरू की। पशु पालन के बारे में पता चला कि सरकार इसमें सब्सिडी भी दे रही है। विभाग से पता चला कि सरकार तकरीबन चार लाख रुपए सब्सिडी देगी। इसमें अलग-अलग कामों के लिए राशि आवंटित की जाएगी। जैसे शेड लगाने के लिए डेढ़ लाख, कंपोज्ड खाद बनाने के लिए 50 हजार और एक लाख रुपए बारे व पंप के अलग। फिर सभी भाईयों ने मिलकर केंद्रीय सहकारी बैंक से 12 लाख रुपए का लोन लिया। इसके बाद सरकार से उन्हें 3.9 लाख का अनुदान मिला। बाजार से अच्छे नस्ल की 15 गायें खरीदी और दूध का व्यवसाय शुरू हो गया। आज वे बालोद के दुग्ध संयंत्र को दूध बेच रहे हैं और उन्हें अच्छा खासा मुनाफा हो रहा है।
अब व्यवसाय बढ़ाने की धुन सवार है। चारों भाई मिलकर प्लानिंग कर रहे हैं। गायों को अच्छा चारा मिले, इसका भी प्रबंध किया गया है। पांच एकड़ खेत के कुछ हिस्से में नेपियर घास लगाया गया है ताकि गायों को सालभर हरा चारा मिलता रहे, जिससे दूध की मात्रा कभी कम न हो। गंगा मैया सहकारी समिति 32 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से दूध ले रही है। इस कारण उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार आया है। अब कोई सदस्य मजदूरी करने के लिए बाहर नहीं जाता। हां घर के काम और व्यवसाय में सभी हाथ बंटा रहे हैं।
दुर्जन सिंह का कहना है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो वे जल्द ही बैंक का कर्ज चुका देंगे। आने वाले दिनों में और भी गायें खरीदने की योजना भी बनाई है। उन्हें विश्वास है कि आठ-दस साल में खुद की डेयरी होगी और वे गांव से ही दूध का व्यवसाय करेंगे।
अापको बता दें कि बालोद जिले में स्थापित पहले दूध संयंत्र में रेट निर्धारित होने से दुग्ध उत्पादकों को तो फायदा हो ही रहा है, शुद्ध दूध मिलने से ग्राहक भी काफी खुश हैं। कारण है यहां लगा संयंत्र, जो मिलावट वाले दूध को फौरन रिजेक्ट कर देता है। इसकी वजह से क्वालिटी खराब नहीं होती और ग्राहकों तक शुद्ध दूध ही पहुंच रहा है। गंगा मैया सहकारी समिति के जरिए गांव-गावं के पशु पालक जुड़ रहे हैं। अब तक 300 पशु पालक जुड़कर लाभ कमा रहे हैं।
सबसे अच्छी बात है कि समिति और संयंत्र से जुड़े ज्यादातर सदस्य खुद दुग्ध उत्पादक हैं और वे इस उत्पादन की खासियत को समझते हैं। यहां पैकज्ड मिल्क के अलावा बाय प्रोडक्ट जैसे दही,मठा, पनीर आदि भी तैयार किया जा रहा है। समिति के अध्यक्ष अनिल कुमार मंत्री का कहना है कि आने वाले दिनों में मुनाफा बढ़ेगा। सदस्यों की संख्या भी बढ़ेगी और पशु संपदा को वाकई एक संपत्ति की तरह देखा जाने लगेगा।