जंगल जाकर पक्षिओं और जानवरों का शिकार करने वाला पारधी समुदाय अब अपने भविष्य की प्लानिंग कर रहा है। धमतरी जिले के चर्रा में खुले नवीन प्राथमिक शाला में इसी समुदाय के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। स्कूल की वजह से ही उन्होंने घुमंतू प्रवृत्ति छोड़ स्थाई आवास बना लिया है। इसी समुदाय की सान्या पढ़कर टीचर बनने के सपने देख रही है। वह बड़ी होने के बाद खुद को मैडम कहलवाना चाहती है। इसलिए रोज स्कूल आती है और जमकर पढ़ाई करती है।
सान्या के पिता झाड़ूराम और मां बुधियारिन पारधी भी उसे अच्छे से पढ़ाना चाह रहे हैं। पहले ये रोजगार के लिए जंगल पर निर्भर थे, जैसा की पारधी समुदायों में होता है। पारधी समुदाय एक जगह ठहरते ही नहीं। वे घुमंतू प्रवृत्ति के होते हैं। जंगल जाना। वहां पक्षियों और जानवरों का शिकार करना। उनका मांस खाना और शहर लाकर बेचना। इनका कोई ठिकाना नहीं होता। ये जगह बदलते रहते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं है। झाड़ूराम ने स्थाई आवास बना रखा है और वे अपने परिवार के साथ खुश हैं।
इसका सबसे बड़ा कारण है नवीन प्राथमिक शाला चर्रा की व्यवस्था। स्कूल में एडमिशन के बाद इस समुदाय के बच्चों को स्वादिष्ट खाना मिला और अच्छी पढ़ाई भी। इसे छोड़कर वे कहीं नहीं जाना चाहते थे। हर साल दिसंबर में अक्सर जंगल का रुख करने वाला झाड़ूराम का परिवार अब गांव में ही खेती-बाड़ी कर रहा है। वे झाड़ू, टोकरी, चटाई जैसी चीजें बनाकर अपना रोजगार चला रहे हैं। अब उनका मुख्य उद्देश्य है बच्चों की पढ़ाई। वे बच्चों का भविष्य बनाने के लिए खानाबदोश जीवन त्याग चुके हैं।
धमतरी के चर्रा गांव में स्थित इस स्कूल के परिसर में एक गार्डन है। गार्डन की क्यारी में छोटे-छोटे प्लांट्स के जरिए लिखे गए अल्फाबेट। सुंदर रंगों से सजी दीवारें। यहां की साफ-सफाई। देखते ही मुंह से वाह निकल जाता है। हर कक्षा में महापुरुषों के चित्र हैं और उनसे संबंधित जानकारियां लिखी गईं हैं ताकि बच्चों का सामान्य ज्ञान बढ़े। इसके अलावा शरीर के अंग, गिनती, पहाड़ा,गणितीय सूत्र, विज्ञान से संबंधित चीजें भी दीवारों पर उल्लेखित है। स्कूल की व्यवस्था देखने के बाद वहां से आने का मन ही नहीं करता।
सान्या बताती है कि सुबह पहुंचते ही प्रार्थना के बाद क्लास रूम में जाते ही पढ़ाई शुरू हो जाती है। टीचर हरेक विषय को अच्छे से समझाते हैं। कक्षाओं में ग्रीन बोर्ड लगे हैं। स्कूल से यूनिफार्म मिला है। मध्याह्न भोजन के समय स्वादिष्ट खाना मिलता है। हर दिन अलग-अलग तरह की सब्जियां बनाई जाती हैं। ग्रामीणों ने बताया कि बच्चों के साथ शिक्षकों का व्यवहार कुछ अलग ही है। वे उन्हें बड़े प्यार से समझाते हैं। बच्चों के सवालों का सही तरीके से जवाब देते हैं।